याद मन बाँध देती है। जब आती है, मन में और कुछ नहीं आता। सिर्फ़ याद आती है। पहले मन के कोरे कागज पर याद का एक बिंदु उभरता है। धीरे-धीरे कागज बिंदुओं से भरता जाता है। एक समय बाद बिंदुओं की सघनता में पहला बिंदु खोजना मुश्किल हो जाता है। जिस याद ने सैकड़ों यादों को जन्म दिया, खो जाती है। जननी का खोना कितना कष्टप्रद होता है। मन जननी की खोज में निकलता है। किन्तु पहली याद से जुड़ी यादें जननी को सोख लेती हैं। जननी याद कौन सी थी, किसी व्यक्ति की, वस्तु की या स्थान की याद; यह तक खो जाता है? यदि मन में उभरी यादों के नोट्स बनाये जाएँ, और बिंदुवार अलग-अलग यादों को लिखा जाए। शायद सम्भव है, पहली याद तक पहुँचा जा सके। इसमें एक ख़तरा है, रातें ख़राब होने का। क्योंकि सिर्फ़ अच्छी यादों के नोट्स बनाये जाएंगे, इसका आश्वासन देना सम्भव नहीं है। नोट्स बनेंगे तो मन का मैल भी शामिल होगा। इसलिए भावनात्मक रूप से यह बहुत कठिन और निचोड़ने वाला होगा। यादों के उद्गम तक पहुँचा कैसे जाए? अगर जल्दबाजी न की जाए और मन को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। तब मन खुद उस पहली याद को फिल्टर करके आप तक पहुँचाएगा। इसके लिए धैर्य चाहिए। क्या ऐसा सम्भव है कि मन को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। थोड़ा मुश्किल है। ऐसा एक बार में नहीं होगा। इसके लिए कई महीने लग सकते हैं। क्या हम इस भागदौड़ में, इतना समय ख़ुद को परिष्कृत करने के लिए खर्च सकते हैं।
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