Anubhav Bajpai   (अनुभव)
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Writer | Director
Joined 6 December 2016


Writer | Director
Joined 6 December 2016
1 MAR 2022 AT 22:56

यात्राएँ भूला
प्रवास भूला
जीवन नाक़ाम
रस्ते तमाम भूला
अब आराम भूल गया

नौकरी याद रही
झगड़े याद रहे
पैसे याद रहे
प्रेमिका याद रही
बीमारियां तक याद रह गयीं

याद रखने के क्रम में
याद रखी बात भूल गया
भूलने के क्रम में
भूल गयी बात याद रखी

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21 FEB 2022 AT 18:21

भाषा से बोली या बोली से भाषा
बोली भी भाषा या बोली ही भाषा
खेलवना भी जाने अउ जाने गजोधरा
कि भाषा है बगिया तो बोली है भंवरा

वो अवधी में बोलें या ब्रज के ही हो लें
बिंदी लगावैं टिकुलिया लगावैं
हरे राम बोलैं या निर्गुन सुनावैं
उनकी है श्रेणी गँवारन की रेड़ी
पिये चाहे सिगरेट या खइचै वी बेड़ी

न भाषा न बोली, न बोली न भाषा
न उनकी अता है, न उनको पता है
अउ जिनको पता है वो सब लापता हैं
भाषा भी आशा है बोली भी आशा
साहित्यकारों की अपनी निराशा

खेलवना भी जाने अउ जाने गजोधरा
कि भाषा है बगिया तो बोली है भंवरा

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6 APR 2021 AT 21:16

याद मन बाँध देती है। जब आती है, मन में और कुछ नहीं आता। सिर्फ़ याद आती है। पहले मन के कोरे कागज पर याद का एक बिंदु उभरता है। धीरे-धीरे कागज बिंदुओं से भरता जाता है। एक समय बाद बिंदुओं की सघनता में पहला बिंदु खोजना मुश्किल हो जाता है। जिस याद ने सैकड़ों यादों को जन्म दिया, खो जाती है। जननी का खोना कितना कष्टप्रद होता है। मन जननी की खोज में निकलता है। किन्तु पहली याद से जुड़ी यादें जननी को सोख लेती हैं। जननी याद कौन सी थी, किसी व्यक्ति की, वस्तु की या स्थान की याद; यह तक खो जाता है? यदि मन में उभरी यादों के नोट्स बनाये जाएँ, और बिंदुवार अलग-अलग यादों को लिखा जाए। शायद सम्भव है, पहली याद तक पहुँचा जा सके। इसमें एक ख़तरा है, रातें ख़राब होने का। क्योंकि सिर्फ़ अच्छी यादों के नोट्स बनाये जाएंगे, इसका आश्वासन देना सम्भव नहीं है। नोट्स बनेंगे तो मन का मैल भी शामिल होगा। इसलिए भावनात्मक रूप से यह बहुत कठिन और निचोड़ने वाला होगा। यादों के उद्गम तक पहुँचा कैसे जाए? अगर जल्दबाजी न की जाए और मन को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। तब मन खुद उस पहली याद को फिल्टर करके आप तक पहुँचाएगा। इसके लिए धैर्य चाहिए। क्या ऐसा सम्भव है कि मन को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। थोड़ा मुश्किल है। ऐसा एक बार में नहीं होगा। इसके लिए कई महीने लग सकते हैं। क्या हम इस भागदौड़ में, इतना समय ख़ुद को परिष्कृत करने के लिए खर्च सकते हैं।

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3 DEC 2020 AT 14:05

नानी की याद में
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जब तुम गयीं
मैं भी चला गया तुम्हारे साथ
मेरा नाम तुम्हारे साथ चिता में जलकर राख हो गया
तुम्हारी अस्थियों के साथ मेरी पुकार गंगा में बहा दी गयी
अब मुझे कौन पुकारेगा
कौन पुचकारेगा
कौन गले लगाएगा
किसकी छाती में इतना प्रेम बचा है
जो मुझे तुम्हारा आलिंगन दे सकेगा

मैंने तुम्हारा आलिंगन
चिता से उठती लपटों के साथ जल जाने दिया
तुम जल रही थीं 
सबको उस लपट की गर्मी महसूस हो रही थी
और मुझे उस लपट में तुम्हारे आलिंगन की

तुम गयीं
मेरा सम्बोधन लेकर चली गयीं
मेरा, एक जीवन लेकर चली गयीं
मेरे पास क्या बचा
तुम्हारी स्मृतियाँ
वो भी 
जितनी जलती चिता से मैंने खीच ली थीं
ख़ैर,
स्मृतियाँ भी कहाँ नयी रहती हैं

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28 MAR 2020 AT 19:34

देखो, तुम नहीं हो
और मैं
तुम्हारा इंतज़ार भी नहीं कर रहा

[शेष अनुशीर्षक में]

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25 NOV 2019 AT 21:16

इस दुनिया में
कुछ मन
काली सड़क पर
सफ़ेद पट्टी से होते हैं

एकदम अलग
अकेले
उजले
सीधे
सरल
और शांत

बिल्कुल तुम्हारे
मन की तरह

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7 JAN 2022 AT 23:30

दादा ने बाग लगायी
बिरवे लगाये
पिता ने उनको संभाला
प्रेम के पसीने से उन्हें सींचा
थाला बनाये
गोड़ाई की
पानी दिया
हमने सिर्फ़ पूर्वजों के पुरुषार्थ के फल खाये
शहर चले आये
पेड़ सूख गये
बाग़ उजाड़ हो गयी
हम गाँव लौटे
पेड़ काटकर प्लॉट काट दिये

पूर्वजों ने बिरवों की बाग लगायी
हमने पैसों की बाग उगानी चाही
उन्होंने प्रकृति को पूजा
हमने प्रकृति को भूजा
उन्होंने धरती में माँ
बिरवों में वासुदेव के दर्शन किये
हमने धरती से धंधा
पेड़ों से पैसों की उगाही की

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19 DEC 2021 AT 16:57

अनुपम मिश्र की स्मृति में
(1948-2016)

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24 AUG 2021 AT 21:38

.......

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15 AUG 2021 AT 9:48

हमने मर्यादा की दीवार धर्म, नस्ल और जाति के औजारों के सहारे गिरा डाली। इसी तरह हम स्वतंत्रता को स्वच्छंदता की श्रेणी पर ले गए और निरंकुश होते चले गए।

जो अभी स्वच्छंदता की श्रेणी पर नहीं पहुँचे हैं, मर्यादित स्वच्छंदता के साथ स्वतंत्र बने हुए हैं, उन्हें स्वतंन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ।

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