20 JAN 2018 AT 15:18

कोख़ कह मान दिया जो भारी,बस नामी,नंगी हवस तुम्हारी अबोधता की ओट में कतई नहीं..
सुकूँ तो फूल सींचने का तुम्हें मिला था, फ़िर नोचने से तुम काँपे क्यूँ नहीं !!

- मृगांका