ये पत्ते जो शाखों से गिरे,
कुछ सूखे, कुछ नरम,खुश्क, हरे,
सावन इन्हें हथेली में समेटे रहा,
पर एक झोंके ने बेघर ही कर दिया
वो तस्वीर जो बड़ी चाह से दीवार पर लगाई,
जाने क्यों उसका अस्तित्व भी जमीन पर बिखेर दिया?
अब जो छोटी सी बगिया आंगन में सजाई है,
मन कहता है उसे बचा लूं, संभाल लूं
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