RAHUL BHASKARE   (राहुल भास्करे)
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Joined 31 August 2018


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20 JUN 2021 AT 22:53



देह का नमक खाकर
हृदय कर्ज तले इतना दब चूका है की,
जीवन का दुःख,
किसी को नही बता पाता।
(कैप्शन में पढ़े)

– राहुल भास्करे






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5 JUN 2021 AT 22:25

Paid Content

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29 MAY 2021 AT 14:16

ग़ज़ल⁣⁣
_________⁣⁣
⁣⁣
बाग को जो गुल ज्यादा महकाता है,⁣⁣
वो सबसे ‌ पहले तोड़ा जाता ‌है।⁣⁣
⁣⁣
कितने तन्हा है हम क्या बतलाए,⁣⁣
दिल खुद ही,दिल को ही समझाता है।⁣⁣
⁣⁣
तन्हाई बस, तन्हाई होती है।⁣⁣
बस अब मुझको वही सपना आता है।⁣⁣
⁣⁣
कैसा इश्क है,उसके बिन रहता है,⁣⁣
जिसको नइ देखे, जी घबराता है।⁣⁣
⁣⁣
कोई नइ सुनता, दिल को मालूम है,⁣⁣
अब अंदर ही अंदर चिल्लाता है।⁣⁣
⁣⁣
~ राहुल भास्करे

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27 MAY 2021 AT 19:21

तुम्हारे बिना मैं,⁣
और किताबों के बिना कमरा,⁣
दोनों एक जैसे हैं।⁣
नियमबध्द,⁣
मौन, ⁣
प्रतीक्षारत,⁣
असंतृप्त,⁣
स्वयं को टटोलते हुए...⁣
( ⁣कैप्शन में पढ़े )

~ राहुल भास्करे

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27 MAY 2021 AT 15:35

दो व्यक्ति,⁣⁣
एक दूसरे को,⁣⁣
कभी भी,⁣⁣
बराबर प्रेम नहीं कर सकते....⁣⁣
⁣⁣
प्रेम कभी⁣⁣
समानुपाती नहीं हो सकता,⁣⁣
प्रेम का समानुपाती होना,⁣⁣
एक अपवाद है।⁣

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27 APR 2021 AT 20:31

प्रेम कल भी था,⁣
प्रेम आज भी है,⁣
प्रेम कल भी रहेगा।⁣

हम कल नही थे,⁣
हम आज है,⁣
हम कल नही रहेंगे।⁣

आओ,⁣
बीते कल को भूलकर
हम प्रेम करे,⁣
ताकि⁣
प्रेम के साथ,⁣
हम बचे रहें कल भी।⁣

• राहुल भास्करे

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24 FEB 2021 AT 21:30

⁣⁣तुम क्यों कहती हो ?⁣⁣
हम दूर हैं,⁣⁣
देखो,⁣⁣
हृदय में झांक कर,⁣⁣
सुनो उसका स्पंदन।⁣⁣
बताओ क्या हम दूर हैं?⁣⁣
( कैप्शन में पढ़े )
⁣⁣
~ राहुल भास्करे

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24 FEB 2021 AT 21:23


⁣⁣लौटने की उम्मीद के बग़ैर ,⁣⁣⁣⁣⁣
लौटने की प्रतीक्षा,⁣⁣⁣
पहाड़ों जैसी होती है।⁣

(अनुशीर्षक में पढे)
⁣⁣
~ राहुल भास्करे

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3 JAN 2021 AT 15:14

कलियां⁣⁣⁣⁣⁣
टूटने के लिए खिलती हैं,⁣⁣⁣⁣⁣
या⁣⁣⁣⁣⁣
टूटकर फ़िर से खिलने के लिए...⁣⁣⁣⁣⁣
⁣⁣⁣⁣⁣ये तुम्हे⁣⁣⁣⁣⁣
प्रतीक्षा बताएगी।⁣⁣⁣⁣⁣
⁣⁣⁣⁣⁣
पहाड़,⁣⁣⁣⁣⁣
पत्थर बनने के लिए,⁣⁣⁣⁣⁣
छाती पर पत्थर रखते हैं।⁣⁣⁣⁣⁣
या,⁣⁣⁣⁣⁣
छाती के पत्थर दबाने के लिए,⁣⁣⁣⁣⁣
छाती पर पत्थर रखते हैं।⁣⁣⁣⁣⁣
ये तुम्हे,⁣⁣⁣⁣⁣
दुःख बताएंगे।⁣⁣⁣⁣⁣
⁣⁣⁣⁣⁣
दुःख और प्रतीक्षा⁣⁣⁣⁣⁣
क्या है..⁣⁣⁣⁣⁣
ये तुम्हे प्रेम बताएगा।⁣⁣⁣⁣⁣
⁣⁣⁣⁣⁣
~ राहुल भास्करे ⁣⁣⁣⁣⁣

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8 NOV 2020 AT 8:21

भूख अंधी होती है,
उसे केवल रोटी दिखाई देती है।
और कुछ नहीं दिखाई देता।

जैसे,
अंधे को कुछ नहीं दिखाई देता।
केवल स्वप्न दिखाई देते हैं।

रोटी भूख का स्वप्न है।
रोटी की खोज में,
भूख सारे स्वप्न खा जाती है।
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© राहुल भास्करे

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