24 FEB 2018 AT 1:15

कुछ ख्वाब हैं अधूरे पूरे से, कुछ लम्हे हैं अनजाने से,
दिल भी मेरा कहाँ समझता है, मेरे कुछ समझाने से,
‎हवाएं अय्यारी जानती हैं, ये तेरा आँचल बन जाती है,
‎यादों का बोझ सहते सहते पलकें बादल बन जाती हैं।
इन आँखों में भी कोई ख्वाब नही और न ही कोई नज़ारा है।
‎ये साल भी ऐसे गुज़र रहा है जैसे तुम बिन हमने पिछला साल गुज़ारा है।
 
हँस देती हैं आंखे जब कोई इनसे गुज़ारिश करता है,
टूटा है पर अब भी देखो, दिल क्या-2 फ़रमाइश करता है,
कलम और कागज़ के बहाने दर्द छुपाना पड़ता है,
खुद की लिखी ग़ज़लों को खुद को सुनाना पड़ता है,
इन नग्मों में , इन ग़ज़लों में न जाने मैंने कितना तुम्हे पुकारा है,
ये साल भी ऐसे गुज़र रहा है जैसे तुम बिन हमने पिछला साल गुज़ारा है।

ख़्वाहिश मचलकर देखो न, बेताब होती जा रही है,
ज़िन्दगी भी कोई खामोश किताब होती जा रही है,
दिल अरमानों से इस तरह खाली होता जा रहा है,
काफिर कोई जैसे एक सवाली होता जा रहा है,
ये जिस्म मुसाफिर दिन का और दिल रात का बंजारा है,
ये साल भी ऐसे गुज़र रहा है जैसे तुम बिन हमने पिछला साल गुज़ारा है।

- Anoop Suri @iamanoopsuri