अब तलक ये ज़ख्म भरने का इरादा नहीं करता, हरा है लेकिन फिर भी कभी दर्द ज्यादा नही करता। इश्क़ और दोस्ती को ऐसे निभा रहा है दिल अनूप, उसे भूलने की कोशिश तो करता है मगर वादा नही करता।
इश्क़ के बारे में कहतीं सरगोशियाँ कुछ भी नहीं, दूरियों को न समझो तो नज़दीकियाँ कुछ भी नही, मेरी ग़ज़लों को लबों से अपने चूमता है वो अब, जिसके लिए थीं कभी, मेरी खामोशियाँ कुछ भी नही।
तुम्हारा जिक्र न हो तो ग़ज़ल अधूरी लिखता हूँ मैं, दिल में हो, पर इस नज़दीकी को दूरी लिखता हूँ मैं। वैसे तो ये काम ज़रूरी है जीने के लिए अनूप मगर, तुम्हारे बिन ली गई साँसों को मजबूरी लिखता हूँ मैं।