बीवी बच्चों के सिरहाने चिट्ठी रख कर जाते हैं
हर युग में कितने ही गौतम ऐसे अक्सर जाते हैं
याद नहीं रहती हैं उनको अपने शहर की गलियाँ भी
जो बच्चे स्कूल से सीधे ही अपने घर जाते हैं
बाद उमर इक गलती करने की भी छूट नहीं मिलती
जैसे ही रफ कॉपी के सारे पन्ने भर जाते हैं
कर्ज़ तले इक सूने घर की बूढ़ी साँकल डरती है
जब सरकारी बन्दे आते कुछ चिपका कर जाते हैं
एक उदासी अनपढ़ है जो गिनती गड़बड़ करती है
उतने लोग न आते वापस जितने छत पर जाते हैं
शर्म ये आती है कहने में हर मज़हब के कुछ बन्दे
मंदिर मस्जिद की दीवार पे क्या क्या लिखकर जाते हैं
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