गिद्ध को कोई गिद्ध कहे कैसे,
भला नेवला साँप बिन रहे कैसे।
माहौल गर्म और लू चल रही है,
हवाओं का वार कोई सहे कैसे।
साथ चलते चलते रुक गया वो,
अब पानी बिना नदी बहे कैसे।
भगवा और हरा दोनों बे-रंग हैं,
फीके को इंसानियत दिखे कैसे।
चाकू-तलवार के ज़ख्म भर गए,
इस ज़ुबाँ का वार हम भरे कैसे।
गाँठ गाँठ न रही नासूर हो गयी,
बिना मर्ज के इलाज करे कैसे।
सारी बिल्लियां हज को चली हैं,
आखिर ख़ुदा से चूहा डरे कैसे।
- अंकुश तिवारी