Ankush Tiwari   (अंकुश तिवारी)
5.6k Followers · 24 Following

read more
Joined 8 December 2016


read more
Joined 8 December 2016
5 APR AT 14:09

इन्हें एक बार आब-ए-कौसर का ज़ायका मिल गया
बाक़ी बदन का पूर्जा पूर्जा ग़म में रूठा हुआ बैठा है

मिरे लबों को गिला-शिकवा नहीं किसी नामुराद से
ये तो बस नादाँ दिल है जो हैराँ परेशाँ हुआ बैठा है

-


29 MAR AT 5:46

मुकम्मल ख़्वाब के ख़्वाबीदा रहे पर कुछ न मिला
मसअ'ला क्या है बस यही मसअ'ला हल न हुआ
दम घुटता रहा, दिल जलता रहा, सर पटकता रहा
पर किसी भी हाल में, मैं अल्लाह को प्यारा न हुआ

-


29 MAR AT 4:46

सर से पाँव तक पागल हो जाने का फ़ितूर सवार है
अब बस दिन में रात रात में सुब्ह होने का इंतज़ार है

हम बिस्तर से उठ जाएँ तो सारी दुनिया जीत लें पर
यार छोड़ो इस दुनिया से भला अब किसको प्यार है

-


25 MAR AT 23:47

तुझे याद होगी फ़क़त मेरे उधार देने की मनाही
मैंने भी अपने क़र्ज़-दारों का चर्चा तक न किया

अपनी ही चीज़ की वसूली गिड़गिड़ाते हुए की
पर सब के दामन को हमेशा साफ़ पाक रखा

-


10 MAR AT 2:22

वो अजनबी अदाकारी कर के दूर चला गया
मैं इंसाँ हो कर इंसानी नस्ल न पहचान सका

एक पुर-सुकूँ ख़ुश्बू मिरे ज़हन में आ ठहरी
मैं कमबख़्त फूलों को मुज़रिम समझता रहा

-


2 MAR AT 10:03

दुनिया भर के सारे अज़ाबों को
सिराहने रख कर सोता हूँ
मैं अपने ही दुःखों का मरहला हूँ,
आज़माइश हूँ, मसीहा हूँ

-


5 FEB AT 2:45

कट जायेंगे ये वीरान रास्ते, सब्र रख
टूटेंगे, रोयेंगे सब तेरे वास्ते, सब्र रख

यह सारी चालाकियाँ मौक़ा-परस्तियाँ
दिखलाएँगी अदू को आईने, सब्र रख

आँसू न बहा, पलकें न झुका, रूठ न जा
खुल जाएँगे सब बंद दरवाज़े, सब्र रख

बे-अदब रास्ते, भयावह दर्द के क़ाफ़िले
शब-ओ-रोज़ तुझे देंगे दुआएँ, सब्र रख

फ़ितरत-ओ-ज़ुबान से तल्ख़ियाँ हटा
फ़रिशतें तेरे साथ हो जाएँगे, सब्र रख

सुब्ह उठ, दफ़्तर जा, काम-काज कर
मिल जाएँगी सब आसाइशें, सब्र रख

-


2 JAN AT 1:19

कई दिन ख़र्च किये, अना बेची, फिर भी जलता रहा
मोहताज रहा दो रोटी का और आसमाँ में उड़ता रहा

मिला कुछ नहीं, सिला कुछ नहीं, गिला भी कुछ नहीं
फिर भी एक दीवाना बुझे हुये दीये में तेल भरता रहा

-


14 DEC 2023 AT 8:33

मेरे बदचलन आवारा ज़ख्मों पे मरहम कौन लगाएगा?
मेरी दीवानगी की इंतहा आख़िर अब कौन बताएगा?

कई सवालों में उलझा जवाबों में बिखरा हुआ रहता हूँ
मुझ बे-ख़बर नादाँ को आगे का रास्ता कौन दिखाएगा?

शऊर उठने बैठने गाने बजाने गले लगाने का है मगर
मेरे अंदर के मसीहा को इंसाँ कब कैसे कौन बनाएगा?

दुःख-दर्द ग़म-ओ-रंज बहुत हैं मेरे दामन की कोख में
मुझे इन सब से अलहदा होना या-रब कौन सिखाएगा?

मेरे माथे की तहरीर और हाथों की लकीर मिट रही है
कलमकार से कलम हो जाना मुझे भला कब आएगा?

-


9 NOV 2023 AT 2:29

विरासत में बस मिले ढेरों ग़म और परेशानी
मोम के पत्थर ने आग के आगे दे दी क़ुर्बानी

दुनिया चाहे इधर से उधर हो जाये मगर यारों
कम-बख़्त मिरे ख़यालों को नींद नहीं आनी

-


Fetching Ankush Tiwari Quotes