पापा का अख़बार पकड़ते ही,
मां का चाय बनाने लग जाना...... इश्क है।-
यह हम दोनो की आखिरी मुलाकात है
साथ यह हमारी आखिरी रात है
कल तुम कहीं और कहीं हम चले जाएंगे
कह दो लबों पे रुकी जो बात है।
तेरी आंखों में नमी सी है
पाजेब की छन छन भी थमी सी है
सुर्ख लब भी ज़र्द पड़ गए
रुखसारों पर शबनम भी बिखर गई है
शायद बिछड़ना जरूरत थी
डगर यहां तक भी खूबसूरत थी
कितनी हैरानी की बात है
टूटते तारे भी नहीं करते पूरी फरियाद हैं।
कल कहीं तुम और कहीं हम चले जाएंगे।
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रोक लूं इस मंज़र को
तकिए के नीचे छुपा के
कमीज़ में फंसी तुम्हारी बाली
महताब हो गई।
कहा कुछ भी न उसने
बस आकर
मेरी बाहों में समा गई।
चूमने लगी
होंठो को मेरे
नजरें मिली जो हमारी
तो शरमा गई।
आंखों में नींद लिए ताकते रहे हम
खा म खां रात बर्बाद हो गई।
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अपनी ज़ुल्फ़ों की clip बना ले मुझे
जो ज़ुल्फ़ों से जुदा कर,
तो लबों में दबा ले मुझे।-
उसका आना हुआ था मेरी जिंदगी में,
जैसे बिस्तर के अनछुए हिस्से की नमी-भरी ठंडक।-
मैने देखा था एक बार धूप को
पिघले हुए सोने सा बिखरते हुए
जब खिड़की से आती हुई कुछ किरणें
उसके चेहरे पर पड़ी थीं
और फिर उसके कंधों पर बिखरे बालों में खो गईं थी
मै वहीं कोने में खड़ा
कुदरत को अपने रंग बिखेरते हुए देखता रहा।
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मौत के मंज़र मै क्या ही देखूंगा,
मैने तकलीफों में पलती मेरी मां देखी है।-
ज़िंदगी भी "मां" जैसी होनी चाहिए।
किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरों के पास कैसी है,
सबको बस यही अच्छा लगता है कि मेरे पास सबसे अच्छी है।
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