कभी खबर आए तो समझ लेना,
नही रहा होगा लड़ने का जज़्बा अपनो से हर उन छोटी बातों पर जो कभी हाज़िर किस्मत लगती थी, नही रहा होगा जवाब हर उस इल्जाम का जो अच्छी नियति पर मिला, नही कर पाया होगा कोई भी खुवाइश पूरी उनकी जो हक से आस लगाए बैठते थे, उतर गया होगा किसी की नजरों में जिनकी नजरों को पलक बिठाया बैठा होगा।
कभी खबर आए तो समझ लेना,
थक गया होगा जोकर का मुखौटा पहने, हसाते, दूसरो की जिन्दगी का मजाक बनते,
थक गया होगा हर रात अपने डरो को डराते
थक गया होगा इंतजार में की कोई बेकाम बस मुस्कुरादे। थक गया होगा हर सुबह, सुबह को कोसते, कभी खबर आए तो समझ लेना,
खुद्दारी की ज़िन्दगी जी खुद्दारी से हारी होगी , बिन खत बिन चिट्ठी, बेशिक्वे, बस बे उम्मीद खुद को समेटा होगा। हार गया होगा लकीरों से उन्हे मिटते देख, जब वादे उन्होंने किसी और के निभाए होंगे, टूट गया होगा जब वो उनके हाथों में समाए होंगे। पर गलती उनकी नही दोषी तो हम हमारे है, कोशिश तो उन्होंने बोहोत की,पर नसीब उनके न्यारे है।
कभी खबर आए तो समझ लेना,
अब शब्दो का सफर खत्म हो चूका था, कागजों ने साथ छोड़ दिया था, कलम की स्याही काली और हर रंग फीका पड़ चूका था।
हवाएं खड़ी थी लेने सब बदल चूका था, साथ की इच्छा में खुद से इश्क हो चुका था।
कभी खबर आए तो समझ लेना,
मिन्नतो की बातों से सो जाना बेहतर था,
अकेले आए थे, बिन बताए जान बेहतर था।
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