यूँ ही मर-मर के जीयें वक़्त गुजारे जाएँ
ज़िन्दगी हम तिरे हाथों से न मारे जाएँ
अहमद फ़राज़
आपने भले पहले हज़ार बार सुनी हो आपको लगेगा कि नहीं ये अभी-अभी हुआ है और लगे भी क्यों नहीं जब हमारा जीवन एक जैसे होकर भी एक जैसा नहीं है तो हमारी कहानी कैसे होगी।
ये जो वक़्त है न उफ़्फ़ तख़्त पलट देता है और हम,
हम बस इस गुमान में चले जा रहे कि हम कर रहे।
अरे आपके करने का काल भी केवल और केवल उस वक़्त के ही हाथ में है।
वही सुनी सुनाई बातें वही घिसी पिटी कहानी
मुद्दा ये है कि कोई भी कहानी जब खुद पर गुजरे वो नई लगने लगती है।
ये जो वक़्त है न वो सियार से भी ज़्यादा चतुर है और वो आपको ये चतुराई तब सिखाता है जब आप तैयार नहीं होते लेकिन आपको जरूरत होती है।
और आप कहानीकार कहते हैं खुद को?
अरे!आपकी सारी कहानियाँ वही तो लिखता है।
कहानियों का अंबार है उसके पास कौन कब आया था किसने क्या सीखा और सिखाया, किसको कितना रुकना था इन सब का कहानीकार वक़्त ही है और वह आराम से सब सुनाता रहता है।
आप चाहें भी तो नहीं बदल सकते इसे बेहतर है स्वीकारना।
ये जो ज़िन्दगी है और कुछ लोगों का साथ है बस वक़्त-वक़्त की बात है।
Ankita
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