Ankita   (©Ankita)
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Joined 17 April 2017


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Joined 17 April 2017
2 JAN AT 10:20

कुछ नए लम्हें फिर आयेंगे
खुशियों की गठरी फिर खोली जाएगी।
बीते साल की कसक फिर भी मन के इक कोने में दबी रहेगी,
कुछ रंग बिखेरे जायेंगे
समय के साथ लगेगी रेस फिर से
जीवन की पटरी पर फिर से ये नया कैलेंडर चल पड़ेगा।

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13 DEC 2023 AT 21:57

जाने वाले अपने पीछे
छोड़ जाते हैं कितने ही काश
अफसोस उमर भर का
चलती हुई सांसों का पश्चाताप
जीने की इच्छा ना होते हुए भी
जीने का जद्दोजहद
जाने वाले तो चले जाते हैं
ले जाते हैं एक हिस्सा उनका भी जो रह गए हैं।

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22 MAY 2023 AT 8:33

मैं घर में होकर
घर से दूर जाना चाहती थी
मुझे तब घर का मतलब शांति मालूम था.
आज घर से दूर अथाह सन्नाटे में
उस शोर- शराबे की बहुत कमी महसूस होती है.

यहाँ इस कैंपस में दो नीम के बड़े पेड़ हैं
एक बड़ा वृक्ष अशोक का है
एक विशालकाय बरगद हुआ करता था
जिसके नीचे बिल्लियाँ बैठा करती थी.

पेड़ के नही होने पर अब उस पार की सड़क
बहुत साफ दिखाई पड़ती है.
बिल्ली का रुदन भी कभी- कभार सुनाई देता है.

मैंने एक घर की तलाश में कितने घर बना लिए हैं.

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24 APR 2023 AT 11:32

सारा समय दूसरों के मन को सम्भालने की कोशिश में
मेरा मन कहीं छुप गया जाकर।
ऐसा रूठा है कि लाख आवाज़ों पर भी बाहर नहीं आता
और जिन्हें मैं सम्भालती रही
उन्हें पता है अपने आप को संभालने का हुनर।

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29 NOV 2022 AT 8:40

हमने कविताओं के प्रेम को
कविताओं के पास रहने दिया।
यथार्थ में उनकी जगह नहीं बनाई
बनाई होती तो जान पाते
प्यार में मिले सेकंड भर का रहस्य
यही कि उस सेकंड भर में लिखी जा सकती हैं
अंसख्य कविताएँ।
कविताएँ उन असमर्थ भवनाओ की
जो मन के भीतर तो हैं पर बाहर नही आना चाहते।
मन की डोरी पक्की और इतनी पक्की होती है
कि बिना किसी रिवाज के भी पड़ जाती हैं गांठे उनमें सम्बन्धो की।
मिठास की..साथ की...
कविताओं के प्रेम के लिए बहुत जगह है दुनिया में
बशर्ते कि सम्बन्ध भी कविताओं सा सुंदर हो

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6 OCT 2022 AT 22:55

दुनिया की तमाम झोलझाल के बीच
उलझनों के बीच
नियति चुनती है हमारे लिए उन चेहरो को
जिनसे बिना मिले भी
जुड़ जाता है मन.

सफलताएँ मुस्कुराहट लाती हैं
दुःख दुआएँ.

हम बुनते हैं ढेरों कहानियाँ
लाखों सपने
अपनी दुनिया से
उस दूर दुनिया को जोड़ने की.

इन कोशिशों से यथार्थ बदले या ना बदले
जीवन जरूर बदलता जाता है.

दूर उस दुनिया के किसी कोने में हमारा मन उस व्यक्ति के साथ चलता हुआ कह रहा होता है दुनिया इतनी बड़ी भी नही है.

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22 JUL 2022 AT 11:06

खुद ही का कहना खुद ही को सुनना है
किसी से कहाँ अब गुफ़्तगू होती है

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19 MAY 2022 AT 11:06

हमने केवल प्रेम चुना
हम क्रांति चुन सकते थे।

हमने सैकडों प्रेम कहानियों में ढूंढा खुद को
और फिर खुद को अलग कर लिया

हम सफल प्रेमी रहे
और असफल साथी।

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16 MAY 2022 AT 11:20

अपने मन से दुनिया आंकिये
अपने मन सा नहीं आंकिये

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14 MAY 2022 AT 10:23

यूँ ही मर-मर के जीयें वक़्त गुजारे जाएँ
ज़िन्दगी हम तिरे हाथों से न मारे जाएँ
अहमद फ़राज़
आपने भले पहले हज़ार बार सुनी हो आपको लगेगा कि नहीं ये अभी-अभी हुआ है और लगे भी क्यों नहीं जब हमारा जीवन एक जैसे होकर भी एक जैसा नहीं है तो हमारी कहानी कैसे होगी।
ये जो वक़्त है न उफ़्फ़ तख़्त पलट देता है और हम,
हम बस इस गुमान में चले जा रहे कि हम कर रहे।
अरे आपके करने का काल भी केवल और केवल उस वक़्त के ही हाथ में है।
वही सुनी सुनाई बातें वही घिसी पिटी कहानी
मुद्दा ये है कि कोई भी कहानी जब खुद पर गुजरे वो नई लगने लगती है।
ये जो वक़्त है न वो सियार से भी ज़्यादा चतुर है और वो आपको ये चतुराई तब सिखाता है जब आप तैयार नहीं होते लेकिन आपको जरूरत होती है।
और आप कहानीकार कहते हैं खुद को?
अरे!आपकी सारी कहानियाँ वही तो लिखता है।
कहानियों का अंबार है उसके पास कौन कब आया था किसने क्या सीखा और सिखाया, किसको कितना रुकना था इन सब का कहानीकार वक़्त ही है और वह आराम से सब सुनाता रहता है।
आप चाहें भी तो नहीं बदल सकते इसे बेहतर है स्वीकारना।

ये जो ज़िन्दगी है और कुछ लोगों का साथ है बस वक़्त-वक़्त की बात है।

Ankita

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