में खाली हाथ लौटकर नहीं जाऊंगा तुम्हारी यादों का इक अंश ले जाऊंगा जाते जाते थोड़ा तो ज़रूर रुलाऊंगा ये रिश्तों के धागों में झूल जाऊंगा तुम्हारी कुछ हसी लूट जाऊंगा पर मैं खाली हाथ नहीं जाऊंगा।
तुम इक बार फिर से मिलना शिकवे और शिकायतों की अदालत करेंगे, वक्त की कैद से आज़ाद हो कर मिलना साथ बैठ कर तारे गिनेंगे, तू मुझसे, मेरा होने के लिए मिलना हम फिर साथ रहने के वादे करेंगे इक मुलाकात के बाद फिर मत मिलना इस बार हम खुद तूझे खो देंगे।
ज़माने गुज़र गए जिन रास्तों में मुड़े वहां से यूं गुजरने का मतलब तो नहीं थी। गुलाब कब के सूख चुके हैं पन्नों में फसे वो नज़्म फिर से पढ़ने का मतलब तो नहीं था। और कह दिया दुनियां को वो अब याद तक नहीं। नहीं, मेरे कहने जा वो मतलब नहीं था।
में शायर होता तो तेरी तारीफें लिखता, तेरी पलकों के नीचे छिपे सागर को लिखता, बेफिक्र तेरी मुस्कान के बारे ने लिखता, तेरे मोती से महंगे अश्कों को लिखता, रूठ जाती तो तुझे मानने को लिखता, मान जाती तो तेरी नादानियां लिखता, पर तुझे बयां कर सके ऐसा क्या ही लिखता, फिर भी अगर में शायर होता तो तेरी तारीफें लिखता।
बेदर्दी , बेवफाई या कत् - ए - आम ही सही हर ज़ुल्म की तुझको माफी हैं आंखों में कुछ मदहोशी तू, मेखाने का साकी हे असले, बंदूकें, ज़हर एक तरफ तू मुस्कुरा कर देख ले तो जान निकल जाती है
तुम ना जाने क्यों इतवार सी लगती हो, हर वक्त इंतजार में रहता हूं तुम्हारे और तुम आते ही जाने की बातें करती हो। हर शक्स से पहले रखता हूं तुमको , पर हर बार आखिर में आके मिलती हो। तुम मुझे इतवार सी लगती हो। हर चीज़ कमाल है तुम्हारी , बस जाते जाते अपनी यादों का, ये सोमवार क्यों छोड़ जाती हो!