मेरा दिल लेके भागी थी वो स्कूल में , मै उसके पीछे भागा तो उसने स्कूल बदल दिया , मै उसके स्कूल पहुंचा तो उसने शहर बदल दिया , मैं उसके शहर पहुंचा तो उसने निकाह कर लिया , फिर मै कब्रिस्तान जाकर बैठ गया ।।
इंतज़ार कर कर के बेचैन सा हुआ जा रहा हूं आधी अधूरी बातें कर के पराया हुआ जा रहा हूं इत्मीनान से ज़रा कुछ पल तो पास ठहर जा छू के मेरे इन लबो को अपना सा तो कर जा ।
ए खुदा बस इतना बता , कहीं ये कलियुग का अंत तो नहीं ? खुद के भेजे इन फरिश्तों को , अब वापस तू बुलाना नहीं । मामूली से इंसान हैं हम , खेल ये तेरे अब सहे जाएंगे नहीं यूं खामखां इन सूखी आँखों को आए दिन रूलाए जा नहीं ।।
कोई जाके मेरी मंज़िल को दूर तो खिसका दे , इन रास्तो में भी अब मज़ा सा आने लगा है । कह दे कोई जाके उससे संवरने में ज्यादा वक़्त न दे , इन खुली बिखरी जुल्फों से ही नशा सा होने लगा है ।।
बाहर तो इसलिए भी नहीं निकलता कि वीरान गलियां देखकर खुद का वीरानापन झलक आता है । ताकता रहता हूं खिड़की से बाहर की दुनिया कोई पूछले हाल तो दिल का दर्द छलक जाता है ।।