मुझसे जियादा उसे कोई बद्तर नहीं लगता
अब जिस्म को मेरे कोई इत्तर नहीं लगता
मैं फुर्सत में दिल को आग पर भी सेंक लेता हूं
गरम बस खून होता है, कुछ सर पर नहीं लगता
है किस्मत बाढ़ मेरी , और मैं मिट्टी का छोटा घर
तू चाहे मार दे गोली , तुझसे पत्थर नहीं लगता
मैं अब भी फेंक देता हूं गुलाब खिड़की से हीं उसके
वो भी कूद जाती है , उसे भी डर नहीं लगता
बुरा लगने को तो हर बात से नाराज़ हो जाएं
मगर इक बात अच्छी है , कुछ दिल पर नहीं लगता
मुझे लिखने में मीटर से ज़रूरी जज़्बात लगते हैं
लिखा तो दिल से जाता है , जहां मीटर नहीं लगता
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