5 NOV 2017 AT 18:50

काँपते होठों पर से भी
आवाज़ यही निकलती है..
उम्मीद की पतली डोर को पकड़े,
हलक़ पे जान ये चलती है ।

बर्फ का भले है गिरा समंदर
घुटा पड़ा तो है अब दम..
अरे साँस अभी भी ज़िंदा है
इतनी जल्दी थोड़े ही मरेंगे हम ।

- आभास