8 JUN 2018 AT 12:38

यह मौसम का मिजाज बदला है,
या लत इसे भी इश्क की लगी है ।
ये हवाएं ऐसी चली हैं,
जैसे माशूक के चेहरे पर मुस्कान लगी है ।
यह पहली बारिश की बूंद ,
जैसे उसकी भीगी जुल्फें टपकने लगी हैं ।
यह बादलों की मचलती बिजली ,
जैसे उसकी चाल में तेजी होने लगी है ।
यूं बादलों का तेजी से कड़कड़ाना,
जैसे अब वह शोर मचाने लगी है ।
ये भीनी भीनी सी मिट्टी की खुशबू ,
जैसे वह अपनी रंगत महकाने लगी हैं।
यह जाती हुई बारिश ,
जैसे महबूबा मेरी अब जाने लगी है।।

- अंकित द्विवेदी "अनल"