इस से पहले तो कोई कुछ भी बुला लेता था
नाम सा नाम हुआ तुमने पुकारा जब से-
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ये सितारे, चाँद, नीला आसमाँ सब वह्म है
बस फ़रेबी आँख है इक रौशनी ओढ़े हुए
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नदी की लय पर थिरकती किरनें
हवा की धुन पर चहकते पंछी
जो सुब्ह आँखों को ये मनाज़िर
दिखे तो जैसे मचल उठा दिन
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पढ़ूँगा मैं वो लिखा करेगी
ख़त-ओ-किताबत हुआ करेगी
चिराग़ मैंने जला दिया है
जो अब करेगी हवा करेगी
बिछड़ के मुझसे वो एक पागल
न जाने क्या-क्या किया करेगी
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तेरे वास्ते क्या ये काफ़ी नहीं है
कहीं ज़िन्दगी थी गुज़ारी कहीं है
नज़र वो तेरी जिससे था दिल परेशाँ
'नज़र' हमने अब तक उतारी नहीं है
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या'नी कहीं इलाज-ए-ग़म-ए-आशिक़ी नहीं
या'नी कि इस शजर का तअ'ल्लुक नदी से है-
बरगद के साये में अक्सर
छोटे पौधे मर जाते हैं
तू मेरी उदासी ओढ़ लिया कर
दुःख को कम करने के लिये-
घुमावदार ढलवाँ रस्ते - सफ़र का
किसी का न लौटना - इंतज़ार का
बिस्तर-ए-मर्ग पर
अरसे से पड़ा शख़्स - मौत का
दुःख कम कर देते हैं...
आहिस्ता-आहिस्ता ख़त्म होना
ख़त्म कर देता है
ख़त्म होने वाली हर शै का दुःख-
دل کو بچہ رہنے دے
تھوڑی سی نادانی رکھ
موت پہ ہنسنا ٹھیک نہیں
آنکھ میں تھوڑا پانی رکھ
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तमाम रंग थे जीवन में जिसके होने से
वो शख़्स अब भी है बाइस मगर उदासी का
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