कभी खुशी तो कभी गम लिखता हूं,
कभी ज़ख्म तो कभी मरहम लिखता हूं,
समझा नही है आज तक कोई अल्फाजों को मेरे
फिर भी न जाने क्यों मैं हरदम लिखता हूं
- अंजान शायर-
भूल जाना अगर इतना आसान होता तो
यहां ना ही कोई राहत इंदौरी साहब और
ना ही कोई गुलजार साहब होता...
- अंजान शायर-
फिर से इक शाम सुहानी आयी,
साथ कई याद पुराने लाई,
कुछ पल मिलते है मुस्कुराने,
वो भी चुराने आयी,
इक शाम सुहानी आयी...
- अंजान शायर
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प्यार का इजहार करने गई और
तेजाब डाल कर आ गई,
वो लड़की थी साहब ना कहने पर
उसका जिस्म जलाकर आ गई...
- अंजान शायर-
यूं रो कर आंसुओं को
जाया न करो,
अपने जज्बात हर किसी को
बताया ना करो,
बैठे है लोग तुम्हारे गम पर हंसने
तुम खुद ही खुद का मजाक
बनाया न करो...
- अंजान शायर-
तेरी यादों में न जाने कितने
मौसम गुजरे,
लौट आना किसी दिन तकलीफ़ उठाकर
रूबरू होने,
इससे पहले की हम गुजरे...
- अंजान शायर-
जिंदगी भी बड़ी अजीब है
जो इस दिल के करीब है,
वो किसी और का नसीब है,
और हम बदनसीब है...
- अंजान शायर-
हां थोड़ा सा बदल गया हूं मैं,
मगर मुझे बर्बाद कर दे
इतनी औकात
इस मोहब्बत में कहां..
- अंजान शायर-
आजकल हर कोई गलती से
बात करने लगे है मुझसे,
चलो गलती से ही सही
मगर याद करने लगे है मुझे...
- अंजान शायर-
खुद की तकलीफ़ मैं आजकल
खुद ही से बांट लेता हूं,
क्योंकि मेरी सुननेवाला
तो कोई है ही नही...
- अंजान शायर-