ये रूत भी कभी यूहीं ढल जायेगी
वो मौसम की तरह बदल जायेगी
वो ठंडी हवा यूँ बिगङ जायेगी
मैंने सोचा ना था, कभी सोचा ना था।
अंधेरे घने से घने आयेंगे
और वो छोङ हमें यूँ निकल जायेंगे
यूँ आँखों से पट्टी उतर जायेगी
मैंने सोचा ना था, कभी सोचा ना था।
जिनकी बातें मिट्टी के महल जैसी थी
महज़ एक आंधी से चकना चूर हो गई
उनके वादे थे साथ खङे रहने के
मैंने सोचा ना था कभी सोचा ना था।
रात गहरा गई अब उजाला नहीं
धारा बदल सी गई अब किनारा नहीं
जो सबने किया वो ग़वारा नहीं
मैंने सोचा ना था कभी सोचा ना था।
-