रुक जा ज़रा दो पल कि करनी है बातें कुछ यूँ लाखों के दरमियाँ,अनसुनी कर तू गया था कुछ अनकही बातों को...पता तो हमे भी है.. कि सारी बेअसर हैं तुमसे अर्ज़ियाँ।पर उम्मीद तो इंसा छोड़ नहीं सकता,क्या पता शायद संभल जायें तेरी मनमर्ज़ियाँ।। - आनन्द सागर की क़लम से
रुक जा ज़रा दो पल कि करनी है बातें कुछ यूँ लाखों के दरमियाँ,अनसुनी कर तू गया था कुछ अनकही बातों को...पता तो हमे भी है.. कि सारी बेअसर हैं तुमसे अर्ज़ियाँ।पर उम्मीद तो इंसा छोड़ नहीं सकता,क्या पता शायद संभल जायें तेरी मनमर्ज़ियाँ।।
- आनन्द सागर की क़लम से