हुआ न था ऐसा कभी ज़मानों में,
ज़रूरतें सिमट गई हैं चंद दुकानों में।
अब क्या मुल्क, क्या विलायत है,
बाहर ना निकलो सरकारी हिदायत है।
सड़कें अब श्मशान हो गईं,
शहरों की शोरगुल भी सुनसान हो गईं।
सच बताओ ये कैसा रोना धोना है,
ये वही भूत है न जिसका नाम कोरोना है?
जो डर का आलम फैलता जा रहा है,
बताना ज़रा!
तुम्हारे अल्लाह, यीशु और राम कहां है?
कब दुआ बरसेगी, अवतार कब होगा?
कब बरकत होगी? उद्धार कब होगा?
सिलसिला थम भी न रहा ज़लज़ले का,
इस जहां में राबता भी मुश्किल है,
कहीं और चलें क्या???...
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