मेरी कलम से... आनन्द कुमार   (मेरी कलम से… आनन्द कुमार)
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शब्दों से कुछ-कुछ कह लेता हूं...
Joined 10 April 2018


शब्दों से कुछ-कुछ कह लेता हूं...
Joined 10 April 2018

उसने कहा मुझे देख जलते क्यों हो, मैंने कहा, अगर जलता तो कबका राख हो गया होता।

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हम चाँद पर पंहुच गए और तुम धरातल पर लड़खड़ा रहे हो…

राजनीति की नई चौधराहट में घोसी में सभी सिर्फ़ पिछड़ों की बात कर रहे हैं। अरे भाई बात सभी का करो, क्या पिछड़ा, क्या अगड़ा क्या दलित।
चुनाव बाद तो तुम भूल जाओगे, काम ऐसा करो जो एकता के सूत्र में पिरोने का हो। हम चाँद पर पंहुच गए और तुम धरातल पर लड़खड़ा रहे हो…
जय हिन्द जय भारत

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किसी के साथ दोस्ती करना और दोस्ती को निभाना, किसी से मुस्कुरा कर मिलना और अपने अंदर उस मुस्कुराहट को बरकरार रखना, ज़िंदादिल और ईमानदार लोगों का काम है…
जिसका मूल्यांकन स्वयं करना पड़ता है ।

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प्रेम में कृष्ण का और कृष्ण से प्रेम का अपना अलग ही आनन्द है…

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मित्र, चित्र और चरित्र बड़े मुश्किल से बनते हैं। इसे सँभाल कर रखना पड़ता है।

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आप चाहे जितने भी बड़े पद पर क्यों न बैठे हों, अगर पद के अनुरूप आपका व्यवहार नहीं है और आपके फ़ैसले में ईमानदारी नहीं है तो आपकी हर योग्यता तुच्छ है।

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क्या ग़ज़ब का संयोग है नये प्रेम में, पुरूष अपने आँगन में ही विद्यमान हैं और स्त्रियाँ घर ही नहीं देश छोड़ कर आ रहीं हैं और जा रही हैं…

सीमा & अंजू

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गाँव से चलकर पैदल आ जाना,
झुर्री पड़ती उम्र में बस चलते जाना।
सड़क तपती धूप, एक टोकरी अमरूद,
रोज़ की बात इनका ऐसे जी जाना…

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लोग कह रहे हैं राजनीति का चरित्र बिगड़ गया है…

जबकि मेरा कहना है कि नेताओं ने अपने फ़ायदे के लिए, चरित्र की राजनीति कर दी है!

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लोग कह रहे हैं आज कल राजनीति करने वाले कितने गिर गए हैं!

अरे भाई, यह केवल राजनीति के चरित्र की गिरावट नहीं है। यह हमारे आपके चरित्र की गिरावट का रिज़ल्ट भी है।

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