खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जल्दी बदलती पोथी।
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती।।
वस्त्र बदलकर आने वालों!
चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से
बचपन नहीं मरा करता है।
कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।।
÷अज्ञात- जुबाँ-ए-आनन्द
31 JAN 2019 AT 22:36