क्या तू है ?
मैं कैसे दूँ; तेरी सत्ता को चुनौती,
लेकिन ! एक बात खटक जाती है दिल में;कि
क्या तू है ?
अगर तू है तो क्यों है?
और अगर नहीं तो क्यूँ नहीं है ?
मैं कभी भी ऐसे चंद सवालों में नहीं उलझा
तब भी नहीं जब तूने मुझे बहुत कुछ दिया बिना माँगे
और तब भी नहीं जब तूने मुझे बहुत कुछ मांगने पर भी ....
कुछ भी नहीं दिया ....!
कभी तू बिना प्यासे को भी साकी बन पिला जाता है
...और कभी सागर का भी एक कोना प्यासा रह जाता है ....
'तू' कब आप से 'तुम' या 'तू' बन गया ये पता नहीं चल पाया
फिर ...दुनिया के रंगमंच पे, ये अंतर क्यों?
यही सवाल आज भी कुरेदता है ...
कल भी कुरेदा था ...
...और कल भी कुरेदता रहेगा, कि
क्या तू है ? या क्या तू नहीं है ?
...पर यही एहसास होता है;कि, 'कुछ तू है '
...पर यह नहीं पता चल पाता है कि ....
क्या तू है .....?
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©अमलेन्दु शेखर
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