Amlendu Shekhar Dubey  
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Joined 16 April 2018


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28 JUN 2019 AT 14:40

#चाय_सा_सरिश्ता...

चाय के बिना ना
मेरी सुबह होती है
ना मेरी अब शाम होती है

चाय के बिना ना
अब कोई काम होता है

मंदिर के पास पियो
या मस्ज़िद के किनारे

गुरुद्वारा पास पड़ा हो या
मज़ार के दीवार के सहारे

जहां मुझे एक कप चाय मिले
वहीं मेरा धाम होता है...

#यक़ीन_मानिए....

©अमलेन्दु शेखर...

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19 JUN 2019 AT 11:16

क्या तू है ?
मैं कैसे दूँ; तेरी सत्ता को चुनौती,
लेकिन ! एक बात खटक जाती है दिल में;कि 
क्या तू है ?
अगर तू है तो क्यों है?
और अगर नहीं  तो क्यूँ नहीं है ?
मैं कभी भी ऐसे चंद सवालों में नहीं उलझा 
तब भी नहीं जब तूने मुझे बहुत कुछ दिया बिना माँगे 
और तब भी नहीं जब तूने मुझे बहुत कुछ मांगने पर भी .... 
कुछ भी नहीं दिया ....!
कभी तू बिना प्यासे को भी साकी बन पिला जाता है 
...और कभी सागर का भी एक कोना प्यासा रह जाता है ....
'तू' कब आप से 'तुम' या 'तू' बन गया ये पता नहीं चल पाया 
फिर ...दुनिया के रंगमंच पे, ये अंतर क्यों?
यही सवाल आज भी कुरेदता है ...
कल भी कुरेदा था ... 
...और कल भी कुरेदता रहेगा, कि 
क्या तू है ? या क्या तू नहीं है ?
...पर यही एहसास होता  है;कि, 'कुछ तू है ' 
...पर यह नहीं पता चल पाता  है कि ....
क्या तू है .....?  


____
©अमलेन्दु शेखर

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14 JUN 2019 AT 23:08

#चाय की अज़ीब कश्मकश...!!

#अब मैं क्या कहूँ ...!

तेरे अपने बारे में...;
मुझसे अब ;

#तुम नही छूटती...!

और तुझसे
अब मेरी #चाय नही छूटती...!!
___
©अमलेन्दु शेखर...

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12 JUN 2019 AT 18:41

#चाय की ख्वाहिशों की दुनियां


दुनिया भर की ख्वाहिशो की फ़क़त
बस उसे ज़रूरतों की चिंता है...

एक हाथ में कलम और ;
दूसरे में #चाय की प्याली रखता है

दुश्वारियां दुनिया की लाख झेल कर भी;
वह ख़ुद में खामोश ही रहता है ...;

लेकिन वह कहता कि ; #चाय में आंच ज्यादा;
और #कलम पे जांच कम नहीं होनी चाहिए...;


आख़िरी दम तक चाय की प्याली में लज्जत
और कलम की इज्जत बचनी चाहिए ....

यक़ीन मानिए...

©अमलेन्दु शेखर

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9 JUN 2019 AT 13:17

पीकर #आधी कप चाय..;
वो बात की उसने पूरी ...!

रात भर #जगकर हम सोचते रह गए ...!

कि यह #चाय की बात थी ..;
या #किस्सागोई कोई थी अधूरी...!!

#यक़ीन मानिए...

___
©अमलेन्दु शेखर

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2 JUN 2019 AT 11:27

लिखते वक्त जब आपको यह लगने लगे की कलम से ज्यादा रोंगटे खड़े होने लगे हैं...
'स्याही' से ज्यादा 'अश्रु' निकलने लगे हैं ...
'वरक' से ज्यादा 'पलकें' भीगने लगी हैं
और जब रोमांच आंखों से ज्यादा मन में उतरने लगे
तब समझ लेना तुम ....;
लेखनी की अनंत यात्रा पर निकल चुके हो...!!

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1 JUN 2019 AT 20:17

मासूम बनकर कर खत्म कर देती है ;
वह मेरी सारी 'चाय की चुस्कियां'
'याद' ही एक ऐसी होती है जो;
'खाली प्याली' के बाद भी नहीं जाती...!!

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31 MAY 2019 AT 19:57

ना हाथ मिलना जरूरी है ;
ना दिल का मिलना जरूरी है ,
हम दोनों जहां कहीं भी बैठे ;
उस दरमियां "दो खाली चाय कप"
और उस पर अंगुलियों के निशां
मिलने जरूरी हैं...!!

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31 MAY 2019 AT 19:40

दिशाओं का अब ज्ञान नही रहा मुझको...
लेकिन 'चायशाला' कि खिड़की पूरब को खुलती है

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31 MAY 2019 AT 14:37

बात जुबां पे आये तो कह देना चाहिए...;
वो 'चाय की चुस्की' नही जो 'हलक' से उतारी जाये...!!

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