झील मे आँखों के उनके उतरे उतर गए, सुरमा लगा कर वो यूँ सँवरे हम सँवर गए, रेत की तरह मुट्ठी में जकड़ा यूँ की बिखरे बिखर गए, खुद ही कहते थे, ना छोड़ेंगे साथ कभी ना मुकरेंगे फिर मुकर गए, दो पल को हाँथ छोड़ उधर गए फिर लौटे नहीं जाने किधर गए...।
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था, मेरी लकीरों से मिट रहा है अक्षर दर अक्षर नाम तेरा न था मैं तेरा तो वो प्यार किसका था, और रक़ीब की बांहों से लिपट कर कहती हो सुकून बहुत था वहां, फिर जो मुझे महसूस होता है यहाँ बता वो आराम किसका था....
लोग क्या कहेंगे! कहेंगे ज़रूर, बिना कहे रहेंगे नहीं। जो बात लोग समझते नहीं, जो बात हज़म होती नहीं, जिन्हें साथ देख सकते नहीं, जो बात समझ आती नहीं, ख़ुशी जिन्हें रास आती नहीं, जो आज तक देखा नहीं, जा आज तक सुना नहीं, जिससे डरते हैं लोग, मानने से मुकरते हैं लोग, जो भेड़ चाल चलते हैं लोग, दूसरों से जो जलते हैं लोग, फ़िर कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।।
ना कोई रोज़ा, ना मन्नत, ना उपवास, तुम तो यूँ ही मिल गई मुझे एक रोज़ सर्दी में धूप की तरह, रात के बाद दिन की तरह, चिराग में पड़े जिन की तरह, घनी धूप में पेड़ की छांव की तरह, भीड़ मे किसी अपने की तरह, तकिये पर पड़े सपने की तरह, तुम तो यूँ ही मिल गई मुझे एक रोज़।