रोज़ सूरज उगने के साथ,
जागते है मेरे सपने,मेरी उम्मीदें,
कि सब पहले जैसा हो जायेगा,
तेरे और मेरे बीच में,
ख़ुश होंगे ठीक वैसे,
जैसे ख़ुश हुए पहली मुलाक़ात में,
ख़ानाबदोश परिंदे, आज तो लौटेंगे,
अपने अपने घरों को,
आज रात की नींद हम लेंगे,
जैसे हासिल कर लिया सब कुछ,
आज शायद अमन ओ आदाब क़ायम हो,
अपनों के मरे रिश्तों में,
आज शायद वो सब कुछ हो,
जिसके लिए तरसे है हम दोनों,
पर .....
चाँद के निकलने के साथ,
मर जाते है मेरे सारे सपने,
सारी उम्मीदें....।
-