Amit Saraswat   (©Amit Saraswat)
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Advocate at
Rajasthan High Court,
Jodhpur
Joined 31 January 2018


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Jodhpur
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20 MAR 2021 AT 15:17

हाथ छिटक के छोड़ के जाने वाले
तू ही तड़फ़ेगा एक दिन हाथ मिलाने के लिए
क्या मैं ही मिला तुझे बर्बाद करने के लिए
लोग ओर भी तो बहुत थे तुझे सताने वाले
मैं मर भी जाऊँ तो, मेरी रूह भी दुआ देगी तुझे
कसर तूने तो न छोड़ी मुझे मिटाने के लिए
कल तूने ही तो बोला के मुसीबत में पुकारना मुझे,
आज मेरी पुकार पे कान में रुई डालने वाले,
इतनी जल्दी बर्बाद नही होगा ये अमित,
ओ मेरे दोस्त मेरी मौत का इंतज़ार करने वाले

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20 MAR 2021 AT 15:15

तुझे ग़ुलाम चाहिए थे
मुझे आज़ाद होना था
तू शायद आबाद कर देता, पर
मुझे बर्बाद होना था,
के मर के भी ग़ुरूर कम न होगा कभी,
तुझे फ़क़ीर चाहिए थे
मुझे शहंशाह होना था,
तुझे भी अफ़सोस है
मेरे छोड़ के जाने का,
तुम्हें गुमनाम चाहिए थे,
पर, मुझे मशहूर होना था ।

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28 NOV 2020 AT 11:55

प्रेम.....की दो ही अवस्था है,
योग ओर वियोग....
योग अक्सर जोडता है
और वियोग तोड़ता हैं,
पर...
अधिकतर...
प्रेम में उलटा होता है
यह योग में घट जाता हैं
ओर वियोग में ओर
गहरा होता है प्रेम।

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26 OCT 2020 AT 14:56

वाक़ई में मिस्स कर रहा हूँ
वाक़ई में मिस्स कर रहा हूँ मैं,
वो काला कोट ओर काला गाउन मेरा,
वो सफ़ेद बेंड जो मेरे गले में सजता था,
किसी नेकलस की तरह,
बहुत दिन हुए ये सब उतारे हुए,
मन से नही, मजबूरी है महामारी की,
जब ये सब था मेरे पास,
तो सोचता था बकवास है ये सब,
अब जब दुर हूँ तो सोचता हुँ,
कुछ न देता हो चाहे मुझे वकालत का पेशा,
पर इतना तो है,
एक सुकून तो देता ही हैं,
आत्मविश्वास भी,
कि सिर्फ़ मैं ही हूँ रक्षक संविधान का,
इस पूरे भारत भर में ।

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2 AUG 2020 AT 19:01

काश स्वर्ग में भी कोई वाहट्स एप्प होता,
मैं बता देता तुम्हें अपने दिल का सारा हाल,
पापा, मुझे पता है, जानता हूँ मैं सब,
तुम जो होते आज इस जहान में,
तो नही देखता मैं ये दुःख सारे,
जो देख रहा हूँ तुम्हारे बिना,
ए खुदा, जब सब डिजिटल हो गया,
तो, तूँ भी हो कुछ डिजिटल,
भेज मुझे मेरे पापा के वहट्स एप नम्बर,
मुझे आज बहुत ज़ोर से रोना हैं ।

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2 AUG 2020 AT 18:56

कितना कुछ टुट गया अंदर,
कितना कुछ टूटना बाक़ी है,
ए ज़िंदगी ये बता,
कितनी साथ चली हैं तूँ,
कितना तेरा साथ चलना बाक़ी हैं ।

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21 MAR 2020 AT 22:45

तुम कहते हो नपुंसक हूँ मैं,
कि मैं पलट के जवाब नही दे पाता,
किसी बात का...,
मैं सोचता हूँ कि धीरज है मुझमें,
कि हर बात का जबाब देने से,
बढ़ते है झगड़े,
और मैं सोचता हूँ कि किसी भी क़ीमत पर,
शायद प्रेम ज़िंदा रह जाए,
तुमने और मैंने बस,
अलग अलग परिभाषा गढ़ ली,
मेरी ख़ामोशी की.........।

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21 MAR 2020 AT 14:31

तुम प्रेम लिखते हो....,
मेरे जीवन में दर्द के सिवा कुछ भी नही,
चाहा तो मैंने भी बहुत तुम्हारी तरह,
जब क़लम पकड़ी हाथ में,
जब कुछ लिखने के क़ाबिल हुआ,
गीत प्रेम के गाऊँगा,
चारों तरफ़ फैलाऊँगा प्रेम,
पर.......,
वास्ता ही नही पड़ा प्रेम से कभी,
समझ ही नही पाया परिभाषा उसकी,
शायद.... तुम्हारा ईश्वर यही चाहता है,
कि मैं दर्द ही भोगूँ,
दर्द ही लिखूँ ।

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15 MAR 2020 AT 14:45

हम जब अबोध शिशु थे,
ईश्वर वाक़ई में बहुत बड़ा था,
ताक़त रखता था सब कर गुज़रने की,
शिक्षक का दिया काम पूरा न कर पाने पर भी,
जब भी प्रार्थना करता उससे तो बचा लेता,
शिक्षक की डाँट ओर मार से.....,
अब बढ़ती आयु के साथ वो सुनता नही मेरी,
क्योंकि....
गाँव,शहर और संसार भर में,
मैंने उसे सिर्फ़ सामान बना दिया कारोबार का ।

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7 MAR 2020 AT 9:15

रोज़ सूरज उगने के साथ,
जागते है मेरे सपने,मेरी उम्मीदें,
कि सब पहले जैसा हो जायेगा,
तेरे और मेरे बीच में,
ख़ुश होंगे ठीक वैसे,
जैसे ख़ुश हुए पहली मुलाक़ात में,
ख़ानाबदोश परिंदे, आज तो लौटेंगे,
अपने अपने घरों को,
आज रात की नींद हम लेंगे,
जैसे हासिल कर लिया सब कुछ,
आज शायद अमन ओ आदाब क़ायम हो,
अपनों के मरे रिश्तों में,
आज शायद वो सब कुछ हो,
जिसके लिए तरसे है हम दोनों,
पर .....
चाँद के निकलने के साथ,
मर जाते है मेरे सारे सपने,
सारी उम्मीदें....।

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