4 SEP 2018 AT 19:38

कविताओं से दोस्ती मेरी गज़लों से रिश्तेदारी है
लो किया क़ुबूल मुझे अब लिखने की बीमारी है

बंदिशें तमाम लगाओ हौसले बाँध ना पाओगे
परिंदे उड़ते आज़ाद हैं सरहद पे पहरेदारी है

मायने रिश्तों के वक़्त के साथ बदलते रहेंगे
माँ की ममता में आज तलक वही ईमानदारी है

ये सिरफिरे जमाने की परवाह किया करते नही
कोई नफ़रत में पागल किसी पे इश्क़ की ख़ुमारी है

रक़ीबों की ख़्वाहिश है पूरी जोर आज़माइश है
हाफ़िज बन साथ रहे उस ख़ुदा की पूरी तैयारी है

वो नसीहतें हैं देते मुझे अब बदलना होगा
मेरे 'मौन' रहने में वक़्त की बराबर हिस्सेदारी है

- ✍️Amit ('मौन')