17 FEB 2018 AT 21:59

दर्द से अपना रिश्ता बड़ा पुराना है
जाके लौट आयेगा ये मेरा दीवाना है

सहर होते ही परिंदे उड़ गये थे जो
शब में उन्हें शज़र पे लौट आना है
 
ये धूप जो निकली है मेरी छत पे
कुछ देर में आफताब डूब जाना है
 
सहम जाता हूँ तूफ़ान के नाम से
सूखी लकड़ी का मेरा आशियाना है

रेत पे क़दमों के निशान जैसा मैं
सैलाब आते ही इन्हें मिट जाना है

नज़रंदाज़ कर दो मेरी इन आहों को
बस कुछ चीखें और 'मौन' हो जाना है

- ✍️Amit ('मौन')