मानसून
सूना सूना था जग सारा तेरे बिना
अच्छा हुआ मानसून तुम आ गये,
गर्मी तपिश की व्यथा थी केवल
शीतल मधु वर्षा लेकर तुम आ गये।
निष्प्राण हो चला था धरा पे जीवन
अमृत भरे मेघ झुंड गगन पर छा गये,
काले भंवरों बिन अधूरा है उपवन
आज हर उपवन पे काले मेघ छा गये।
हर निराशा आशा में बदल चुकी
तुम जीवन के हर रूप को भा गये,
दुःख से छलकता था हर कोई यहां
उल्लास वाले गीत सभी को भा गये।
ऋतुराज बसंत को मानते हैं यूं ही
शायद पवन से मानव जन भरमा गये,
नूतन वर्षा काल का आगमन हो गया
दूसरे ऋतुओं के प्रशंसक शर्मा गये।
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