30 OCT 2017 AT 18:52

धूल थी चेहरें पर ग़ालिब की आईने को वो बार-बार चमकाता रहा।
नफ़रत थी बस उनके वसूलों में वो बार-बार ज़माने पर ऊँगली उठाता रहा।

- अलिज़ेह