धूल थी चेहरें पर ग़ालिब की आईने को वो बार-बार चमकाता रहा।नफ़रत थी बस उनके वसूलों में वो बार-बार ज़माने पर ऊँगली उठाता रहा। - अलिज़ेह
धूल थी चेहरें पर ग़ालिब की आईने को वो बार-बार चमकाता रहा।नफ़रत थी बस उनके वसूलों में वो बार-बार ज़माने पर ऊँगली उठाता रहा।
- अलिज़ेह