Akshay sinha   (चीकू)
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Extremely Sarcastic
Not a writer
Joined 5 July 2017


Extremely Sarcastic
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20 SEP 2023 AT 17:18

मैं चलूंगा किसी रोज
तुम तक पहुंचने की चाह में
पर मुझे भी इल्म है
पहुंच नहीं पाऊंगा तुम तक
शहरों तक नहीं सीमित रहा
हमारे बीच का फासला
ये बढ़ गया है उससे कहीं ज्यादा
फासला अब समय का है
तुम रह रहे हो किसी और वक्त में
मैं किसी और वक्त में रह गया
कई सभ्यताएं बसाई जा सकती हैं
हम दोनों के दरमियान
पर मैं चलूंगा किसी रोज
तुम तक पहुंचने की चाह में।।।

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9 JAN 2023 AT 17:07

ना हासिल है तो क्या है
हासिल हो जाना मुकम्मल नहीं है
बंजारे जिस्मों के इस दौर में
वो मेरी रूह का ठिकाना है

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1 DEC 2022 AT 18:34

झूठे हैं वो लोग
और झूठे हैं उनके
वो तमाम किस्से
जिसमें वो जीत जाते हैं
खुद से लड़ाई लड़ कर
हर रोज लड़ता है कोई
हर रोज मात खाता है
और फिर से खड़ा होता है
अपने लहुलुहान मन को
एक बार फिर से समेट कर
एक और शिकस्त खाने को

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30 NOV 2022 AT 15:04

मुझपर एक एहसान कर दे
ले चल मुझे थोड़ा पीछे
कुछ फैसले गलत हो गए
कुछ वादे अधूरे रह गए
कुछ है जो उलझा सा है
मुझे थोड़ा सुलझा लेने दे
जिन्दगी मेरा एक काम कर दे
मुझपर एक एहसान कर दे

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28 OCT 2022 AT 22:15

तुमसे बातें करना
तुम्हारी ही बातें
किसी और का नाम ले कर

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26 OCT 2022 AT 22:46

कुछ दर्द को कम हो जाने में
कुछ जख्मों को भर जाने में
कुछ निश्चित नहीं है ये समय
फासला चंद सांसों का हो सकता है
या सांसों के टूट जाने तक का

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24 OCT 2022 AT 21:15

एक दिया बचा रखा है मैंने
बरसों से तुम्हारे नाम की
बैठा हूं इंतजार में तुम्हारे
साथ जलाने की हसरत लिए
अंधेरा घना है दिल एक कोने में
तुम आ जाओ तो उजाला हो

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21 OCT 2022 AT 17:07

इसलिए भी जरूरी है
मेरा तुम्हें हर रोज लिखना
कहीं बिखर ना जाऊं रो कर
खुद को रोकने की जिद में

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2 SEP 2022 AT 6:27

तुमसे ना मिल पाने का यकीन तो है
पर उम्मीद है की टूटने को राजी नहीं

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11 AUG 2022 AT 20:03

तुम्हारा शहर
तुम्हारी गली
और तुम्हारी यादें
भिगोने को ये कम थे
की अब ये बरसात भी आ गई

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