Akshay Shukla   (Akshay jijivisha)
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Joined 27 December 2017


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Joined 27 December 2017
28 OCT 2022 AT 18:28

आंखों से मैं बातें करता।
आसमान में बहता बादल...
मेरे अन्दर थोड़ा-थोड़ा,
रहता है पर दिखता थोड़ी।।

तन-मन में जो चलती रहती।
दूर समुन्दर की उड़ती लहरें...
सब के अंदर थोड़ी-थोड़ी,
रहती हैं पर दिखती थोड़ी।।

इनसे मिलकर , उनसे मिलकर!
शांत शाम की आतुर तितली...
सबके अंदर थोड़ी-थोड़ी,
रहती है पर दिखती थोड़ी।।

रात रेत में है मिल जाता।
सुबह सुनहरे मन का घोड़ा...
सबके अंदर थोड़ा-थोड़ा,
रहता है पर दिखता थोड़ी।।

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19 JUN 2022 AT 4:19

EXHUMATION

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18 MAY 2022 AT 21:42

Perks of having a "gay best friend".

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12 MAY 2022 AT 21:05

RESURRECTION 🍀

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25 MAR 2022 AT 14:29

What's not beautiful
is a part of you.✨

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21 MAR 2022 AT 10:13

कभी-कभी जो कोई ख्याल,
तुझे देख कर कोई सवाल ,
कोई लम्हा थम जाए ...
या रुक जाएं सासें।
मत पूछ लेना के क्यूँ ,
कभी-कभी जो मन चाहे,
पर आत्मा तुझसे लिपट जाए,
मेरी आहें हो जाएं तेज़,
और नज़र में तु रुक जाए ,
बस देख लेना यूँ।
कभी-कभी जो तेरी बात हो,
कभी-कभी जो तू पास हो,
ना बात होई हो कभी तो क्या ,
ना साथ तू रही हो तो क्या,
कभी-कभी जो होता रहता है,
सोचती रहना होता है तो क्यूँ ?

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15 MAR 2022 AT 9:48

✨ जिजीविषा

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14 MAR 2022 AT 15:01

भंवरा, माली : फूल
(अनुशीर्षक मे पढ़ें)

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13 MAR 2022 AT 16:07

On the desert, lost in sand.
Can somebody find me?
Alive or dead, hold my hand!

Verge of absurd, kept in bound.
Can somebody light me?
Good or bad, take my stand.

Weed on dirt, lone existent.
Can somebody grind me?
Poison or seed, where's my land.

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12 MAR 2022 AT 5:07

Behind n beyond.
(read full piece in caption)

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