एक अंजान सफर पर एक मोड़ सी मिली ठहर के देखा तो मेरी मंजिल तुम ही थीं तुम्हें देखा तो एक सुकून सा मिले सुन के तुम्हें ही मेरी रूह को राहत मिले साथ तुम्हारा दुआ लगे तो कभी दवा लगे दुरी मिलो की होकर भी साथ मेरे तू हर पल लगे कैसे थामू ये शब्दो के सैलाब को तू हर अक्षर मेरा तू ही मेरी कलम लगे
एक तरफा मोहब्बत में दिल संवरते हैं.. दो तरफा में बस दिल ही बिखरते हैं... ख़बर ही न उन्हें के दिल में वो बसते हैं.. अधूरी मोहब्बत में ही आशिक सच्चे मिलते हैं...
यूं तो किस्से सुनाए जाते हैं मोहब्बत के... कभी हीर रांझा कभी लैला मजनू के... यूं तो किस्से सुनाए जाते हैं मोहब्बत के... कभी हीर रांझा कभी लैला मजनू के... कभी आखरी मुलाकात की कहानी भी सुनना एक आशिक से... कभी आखरी मुलाकात की कहानी भी सुनना एक आशिक से... मोहब्बत दिल छोर कर निकल आएगी तुम्हारी आंखो से..
कुछ इस तरह ये वक़्त बदला है... सदियों बाद ये दिल मेरा तन्हा है... रोना चाहूं तो रो भी नहीं पाता... अश्कों ने भी मेरे तेरा साथ पूछा है...
कहीं इस दिल में कुछ चुभता है... तेरी ख़ामोशी के शोर में मन मेरा रोता है... किसी से कहूं भी तो कुछ कह भी नहीं पाता... शब्दों ने भी मेरे बस तेरा पता पूछा है...