14 JUL 2018 AT 14:27

हम उल्लू के तरह रात रात जागकर क्या करते है

छत को बनाकर आसमां तारें गिनते हैं
कभी चांद की चांदनी बनते हैं
तो कभी बनके जोगन चांद की रोशनी के लिए तड़पते हैं

हम उल्लू के तरह रात रात जागकर क्या करते है

ख्वाइशों को पर लगा कर सारा जहान घूम आते हैं
हकीकत से रूबरू होकर फिर जमीं पे चलें आंतें है

हम उल्लू के तरह रात रात जागकर क्या करते है

नींद को बनाकर पेहरेदार
ख्वाबों के शहर के चक्कर काट आते हैं
कितने ख्वाब तो यूं उल्लू के तरह जाग के पुरे किए हैं

फिर भी लोग पुछते रहते हैं कि
हम उल्लू के तरह रात रात जागकर क्या करते है

- Akshada salekar