मैं चीखना चाहता हूँ, चिलाना चाहता हूँ,
अपने जिस्म के हर एक जख्म को बयान करना चाहता हूँ,
मैं ये तो नहीं था कभी जो आज बन चूका हूँ,
बार-बार न जाने क्यों मैं इससे मैं दोहराना चाहता हूँ,
अपने इस दर्द को, चुभन को अब और मैं नहीं सेहना चाहता हूँ,
मैं आज जो भी हूँ ऐसा तो कभी नहीं बनना चाहता हूँ,
मैं लड़ रहा हूँ जगड रहा हूँ खुद से,
पता नहीं बार-बार क्यों सबको ये बताना चाहता हूँ,
एक दर्द हैं मेरे सीने मे जो मैं और नहीं छुपाना चाहता हूँ,
पर अपना हाल-ए-दिल बयान करूं भी तो किसी,
कोई था अपना जिसके रुख मोर लेने से ही तो मैं,
आज मैं इस मोर पर आया हूँ !!!
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