कागज़ के थे सपने इन सपनों को एक न एक दिन तो जल जाना था तुम और मैं एक ही थे हमें कहीं मिल ही जाना था वक्त और प्रेम बीतता गया इसे तो बदल ही जाना था मिले हम बिछड़े हम ये दर्द तो हिस्से आना था हमें इसी तरह जिये जाना था
रात के डेढ़ बजे के बाद एक ख़्याल आया चेहरा उसका सामने खुशहाल आया मैंने देखा कि आज का दिन अलग है रात आधी थी फिर भी अजब सा सवाल आया वो दोस्त जो था पुराने समय का क्या उसको भी कभी यह सवाल आया क्या होगा मेरा हाल यह ख्याल आया शायद नहीं, यही सही होगा भूल जाना ठीक, अब यही होगा और यह सोच कर बस हटी थी नज़र तो दिल को सांस न आई पलकों पर आँसू आ गए समझ आ गया कि धंसी हुई धांस अब भी धंसी है इसलिए तो चैन अब तलक ना आया शायद इसलिए रात डेढ़ बजे के बाद ये ख्याल आया
रोज़ रात को सोने से पहले किसी ज़रूरी दवा की तरह लेती हूँ नाम तुम्हारा किसी बद्दुआ की तरह उफ्फ! फिर याद आ गए तुम छोड़ क्यों नहीं देती पीछा ये यादें क्यों ये नहीं हो जाती तुम्हारी तरह मैं अब तंग आ गयी हूँ इतनी मोहब्बत भी नहीं की जाती किसी से इस तरह सोच कर बैठ चुके है हम अब यह जो है दिल का लगना, टूटना सब बैठ कर जोड़ेंगे हम जो गिरा है तिनका तिनका सब बटोरेंगे हम कुछ जो नहीं सिमटा उस से ही सवाल करेंगे उम्मीद है उम्मीद भी एक दिन छोड़ जाएगी साथ तुम्हारी तरह