एक ठिठुरता हुआ शख़्स, ठिठुरती हुई आग को देख रहा था। ख़ामोशी के कारण सड़क गीली पड़ी हुई थी, और आग वक्त के साथ-साथ पिघलती जा रही थी। जनवरी का महीना सर्द हवा, बगल में रखा हुआ ख़ामोशी का लिहाफ़, यह सब उस ठिठुरते हुए शख़्स को चमकती हुई आँखों से घूर रही थी और वह शख़्स अपनी समझ से आग के आँसू को राख की चादर बनते देख रहा था।
-