मशरूफ खुद को इतना कर, के नामुराद सवाल ना आए,, मेहनत अपने बाजुओं से हो, किसी के कंधों पर निशान ना आए...🍂 कमबख्त आसमान सबका है, जो ना डूबे, बेगैरत रात कभी ना आए।...🍂
थोड़ा रुक से गए हैं कदम, हालातों के चलते, मंजिल का रास्ता अभी भूला नहीं है। दोनों हाथों में है आसमान , वो खुदा अभी रूठा नहीं है।। जी भर मजबूत है इरादे, वो अभी कहीं से टूटा नहीं है।...
कि याद आ गया आज फिर वो शख्स, जो बेपरवाह इश्क़ किया करता था, थाम लेता था वो हाथ, बिना फरेब के, ना जाने कौन- कौन सी रश्मे किया करता था। हां छोड़ा था उसने हाथ, चुपचाप दुआएं किया करता था, याद आ गया आज फिर वह शख्स.......
नए रिश्तों के चक्कर में, पुराने छोड़ आया है, वो इंसान है, बिन बांधे कश्ती किनारे छोड़ आया है। समंदर अपने उफान पर है, कमबख्त किनारों से इतना टकराया कि दरारे छोड़ आया है।...
ये मदहोशी, ये शुरूर, बस मयखाने तक रहने दो,, इश्क़ है, "मुझसे" खूब करो, बस अपने दिल के दरवाजे तक रहने दो,, "इश्क़" ये तो रोग है, मेरे खुदा इसे जमाने तक रहने दो।...