19 OCT 2017 AT 2:39



कुछ धागे उखड़े ही अच्छे लगते हैं
जैसे फटी हुई जीन्स
कुछ ज़ुल्फें बेतरतीबी से बंधी हुई ही अच्छी लगती हैं
और चाहत सिर्फ बेरुखी के पीछे शर्मा कर छिपी होती है,
कभी कभार झांकती है और गले लगा जाती है

*complete poem in caption*

- Swarup