कुछ धागे उखड़े ही अच्छे लगते हैंजैसे फटी हुई जीन्सकुछ ज़ुल्फें बेतरतीबी से बंधी हुई ही अच्छी लगती हैंऔर चाहत सिर्फ बेरुखी के पीछे शर्मा कर छिपी होती है, कभी कभार झांकती है और गले लगा जाती है*complete poem in caption* - Swarup
कुछ धागे उखड़े ही अच्छे लगते हैंजैसे फटी हुई जीन्सकुछ ज़ुल्फें बेतरतीबी से बंधी हुई ही अच्छी लगती हैंऔर चाहत सिर्फ बेरुखी के पीछे शर्मा कर छिपी होती है, कभी कभार झांकती है और गले लगा जाती है*complete poem in caption*
- Swarup