कांच के शीशों पर जा बसी
भाप को मत पोंछो
एक गर्म केतली
और सांसों के गहरे होने का
सबूत है वो
बाकी तो
चाय खत्म होने तक
बातें बदलने तक
कुछ कमी निकाल ही लेंगे एक दूसरे में
गहमा गहमी गरमा गर्मी में
शीशे की भाप पिघल ही जाएगी
तुम्हारी तरह
मेरी तरह
फिर शायद हमारी तरह
- Swarup