दुल्हन सा सज रहा है लग रहा है कुछ अनोखा,
नभ शोर कर रहा है भू को मिला है धोखा।
नम्रता का दर्पण पर भड़का भी कभी सोला,
भ्रष्ट कूऐं से जल भरता सच्चाइयों का मौला।
जिसने दिया भारत को हुंकारने का मौका,
नभ शोर कर रहा है भू को मिला है धोखा।
लड़ रहा था सारे जग से आस्तित्व भूल अपना,
बहता था जिसके मन में हर भारतीय का सपना।
दीप यू अटल था जलता पवन का झोंका,
नभ शोर कर रहा है भू को मिला है धोखा।
तो हे भारतीय सिखो इस अडिग से जरा भी,
स्वीकार कर सबको तुम लाल भी हरा भी।
कब तक बने रहोगे तुम मांझीयों का नौका,
नभ शोर कर रहा है भू को मिला है धोखा।
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