Aditya आदित्य   (Adi)
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I write to discover myself. Read along to explore my discoveries.
Joined 30 November 2017


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Joined 30 November 2017
28 FEB 2020 AT 15:58

खाली ज़मीन नहीं दिखती
खुला आसमान ढूँढते हैं।
धूल भरी फिज़ा में
मौसम बहार ढूँढते हैं।
नज़र उठा कर देखते हैं जब
मंज़र देख जाने क्यों झुक जाती है।

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26 FEB 2020 AT 1:06

रे परदेस जातो बादलियो
म्हारो भरतार बठै खटे छै घाम म
थे वा के ऊपर छत्तर बण जाज्यो।
म्हारा नैणां रा पाणी ले जा क
थे बरसो, वा का पग पखारज्यो।
बैरण चाँद पर थे घूँघट बण जाज्यो
जो निजर डारै म्हारे बालमा पे।
इतनी सी तो सुणता जाज्यो.....।

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22 JAN 2020 AT 15:51

चिन्ता न करो,
सँभाल कर रखा है
अब तक
ये तन
तुम्हारे लिए।

हालांकि,
मन
अर्पण कर चुकी किसी को,
मगर,
इस पर तो ऐतराज़
नहीं होगा ना
तुम्हें।

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22 JAN 2020 AT 3:15

बेड़ियाँ बाँधता है खुद ही,
फिर अपनी बेबसी पे रोता है।

मालूम पड़े तो बताना
ऐ दिल! आखिर चाहता क्या है?

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22 JAN 2020 AT 2:58

तीन घंटे हो गए, पता भी न चला
सोचा न था यूँ मदहोश होंगे कभी।

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22 JAN 2020 AT 2:53

तुमने तो कह दिया यूँ ही और फिर चल दिए
हम ही उसे कलमा समझ इबादत करते रहे।

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22 JAN 2020 AT 2:35

मेरी हँसी तुम्हें पसंद थी ना,
रूठ गई है तुम्हारे जाने से
कुछ दिन इसे तुम रख लो ना।

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21 JAN 2020 AT 23:09

वजह ढूँढना मेरा।

कुछ सोच कर ही मेरा
चाँद आया नहीं आज।

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20 JAN 2020 AT 19:11

Ki qadar hi nahi rahi.

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20 JAN 2020 AT 18:58

आपस में बाँट लेते हैं।
आँगन तुम्हारा,
धूप मैं रख लेता हूँ।
ख्वाब तुम्हारे,
यादें मैं रख लेता हूँ।
वक़्त तुम्हारा,
लम्हे मैं रख लेता हूँ।
जिस्म तुम्हारा,
दिल मैं रख लेता हूँ।
क्यों, ठीक है न?

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