दिल बिखर गया है मेरा,
अब चाहु तो कलम के ज़रिए भी कुछ कह नहीं पाती।
न जाने कैसी चोट है ये, जो दिखती नहीं,
पर दर्द मौत से बतर दे जाती।
सबसे बड़ी मजबूरी तो ये है के रोना भी मुमकिन नहीं है,
किसी को कह नहीं सकती माना,
पर खुदसे ये दर्द बाटू ये भी मुनासिब नहीं है।
चीख रहा ये दिल और ये आँखें दर्द मैं,
माना लाभों पर हसीं है,
पर उनकी चीख भी कम नहीं है।
कोई हो जो ये समझे,
जो इस नकाब के पीछे कि गहराई को समझे,
जो इस बिखरे दिल को एक बार फिर जोड़े,
और प्यार से पकड़े।
अंधेरे मैं डर न लगे इसीलिए रोशनी बन जाए,
भरी महफिल के अकेलेपन मे मेरा साथी बन जाए,
कोई हो जो मेरे बिखरने से पहले मेरी ताकत बन जाए।।
-