तू मेरी पहचान है बस तू ही मेरी जान है
तेरे सदके सब लुटा दूँ तुझपे सब कुर्बान है
तू ही मेरे ख़्वाहिशों की आखरी मंज़िल वतन
तेरी ही मिट्टी में मिलना चाहता है दिल वतन
तोड़े से भी टूटे ना जो ऐसा है इक नाता तू
ग़ैर हो या कोई अपना सबको है अपनाता तू
बनके शोणित इन रगों में बहता रहता तू वतन
जिस्म के पूरब में हर पल है धड़कता तू वतन
जाने कितनी मुश्किलों के बाद आज़ादी मिली
कितने शहीदों के लहू से है सनी ये सरज़मीं
भूल से भी भूल मत जाना इसे एहले वतन
माँ की आँखों से गुलामी की न फिर छलके नमीं
-