Prakhar Pandey   (Aadil)
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मैं कौन हूँ ये खुद भी नहीं जानता हूँ मैं
Joined 18 April 2018


मैं कौन हूँ ये खुद भी नहीं जानता हूँ मैं
Joined 18 April 2018
3 NOV 2022 AT 22:11

बोले बिना ही जो पढ़ती थी खामोशियाँ
आँखें जो वाकिफ़ थीं पर्दों से मेरे सदा
मेरे जिस्म-ओ-जाँ में वो मौजूद है इसतरह
मुमकिन नहीं अब किसी और से राबता

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31 OCT 2022 AT 1:42

तेरे ख़्वाब जबसे रक़ीब हुए हैं इसके
नींद कुछ ख़फा-ख़फा है आंखों से

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9 FEB 2022 AT 14:02

कभी कभी आंखों को खाली कागज खलता है— % &

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11 OCT 2021 AT 3:59

कुछ तो खूँ भर फिर से नया यार ख़ुदा
मेरे जज़्बात, मेरे शेर पीले पड़ रहे हैं

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9 SEP 2021 AT 4:23

एक मसला हमारे पहलू में इसकदर फँस के चलता है
रूह तड़प के रह जाती है जिस्म हँस के चलता है

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16 AUG 2021 AT 3:29

मैं आपसा हूँ ही नहीं मेरा मामला कुछ और है
ये आवारगी ये बेकली ये सिलसिला कुछ और है

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15 AUG 2021 AT 11:26

तू मेरी पहचान है बस तू ही मेरी जान है
तेरे सदके सब लुटा दूँ तुझपे सब कुर्बान है
तू ही मेरे ख़्वाहिशों की आखरी मंज़िल वतन
तेरी ही मिट्टी में मिलना चाहता है दिल वतन

तोड़े से भी टूटे ना जो ऐसा है इक नाता तू
ग़ैर हो या कोई अपना सबको है अपनाता तू
बनके शोणित इन रगों में बहता रहता तू वतन
जिस्म के पूरब में हर पल है धड़कता तू वतन

जाने कितनी मुश्किलों के बाद आज़ादी मिली
कितने शहीदों के लहू से है सनी ये सरज़मीं
भूल से भी भूल मत जाना इसे एहले वतन
माँ की आँखों से गुलामी की न फिर छलके नमीं

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8 AUG 2021 AT 0:17

मुंबई है कि काशी क्या कहें
मुद्दत की रूह प्यासी क्या कहें
जाती नहीं सही अब ये दूरियां
बात है ये ज़रा सी क्या कहें

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22 JUN 2021 AT 1:32

हर बार लफ़्ज़ों में चासनी कोई ज़रूरी है
कान जैसे हों सामने ज़ुबाँ वैसी ज़रूरी है

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3 JUN 2021 AT 12:42

आँखों से अबरु छंटते नहीं क्यूँ
रब जाने किस्मत का लिखा
साँसें सुलगती हैं तिश्नगी से
दिल में उठा सा है धुआँ

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