अरि की तलवारों के आगे, जब तेरा शीश लगे झुकने
जब रक्त देख कर भय व्यापे, जब हाथ लगे थकने-कंपने
हो जीवन मृत्यु की छाया में, कोलाहल हो अन्तर्मन में
हो दुश्मन दल में फंसे हुए वहिं जख्मी बदन लगे गिरने।
वक्षस्थल घायल हो तेरा मस्तक पर कोइ चरन प्रहार करे
शत्रु तेरी मिट्टी कुचले पल-पल उसका प्रतिकार करे।
तब-तब अपनी उखड़ी सांसो को लेकर तुझको उठना है
रंगे सियारों के झुंडो पर सिंह गर्जना करना है।
अब तुझको नहीं बिखरना है।
बस तुझको आगे बढ़ना है।
Adarsh Srivastava
- यार बंजारा