प्रश्न अनेकों सबने पूछे सबके उत्तर बहुत दिए,
यशोधरा के शब्द तीर पर बुद्ध खड़े थे मौन लिए..
जो बतलाकर वन में जाते, ये व्यवहार नहीं था क्या
क्या सोचा था रोकूंगी, मुझपर विश्वास नहीं था क्या
मन की पीड़ा जान सकूं, इतना अधिकार नहीं था क्या
पल भर को भी याद न आई, बिल्कुल प्यार नहीं था क्या
एक तरफ थी पीर घनेरी एक तरफ थे होंठ सिए,
यशोधरा के शब्द तीर पर बुद्ध खड़े थे मौन लिए..
जब दुनिया से दूर रहे, तब मन में प्रश्न नहीं था क्या
जिसको पाने वन वन घूमें, सत्य वहीं पर ही था क्या
हाथ हृदय पर रखो बोलो, वो सब यहां नहीं था क्या
ये सेवक ये द्वार महल सब, इनमें ब्रह्म नहीं था क्या
कहते कहते अश्रु छलके विरह वेदना साथ लिए,
यशोधरा के शब्द तीर पर बुद्ध खड़े थे मौन लिए..
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