18 FEB 2020 AT 0:28

तुम्हे मेरी ग़ज़ल से नफ़रत है
आंखें मूंदो नजरिया बदल लो
ये आग है आग धधकती रहेगी
जरा ख्वाब देखो दरिया बदल लो।

अविरल अद्भुत शब्दों का संगम है
आह कि उपज भाव का जरिया है
तुम्हारी इस हुलिया का आईना है
तुमने जो सोचा नहीं वो नजरिया है।

- अभिषेक तिवारी "तन्हा"