ये जो शहर रूकता नहीं था कभी ,
कल ठहर सा गया था
परींदे आजाद थे और आदमी कैद था
कुछ लाल छिंटे पड़ी हुई थी सड़को पर
और खौफ से भरी हुई थी आंखे
इंसानियत वहीं घायल पड़ी कराह रही थी
मैं उसे देखते ही पूछ बैठा
" अरे भाई तुम्हारा ये हाल किसने किया,
तुम्हें बचाना तो सबका धर्म था ना"
धर्म सुनते ही वह फफक पड़ा
फिर पता नहीं क्यों अचानक
जोर जोर से हंसने लगा
"धर्म.....हां वे लोग बार बार
धर्म की ही तो दुहाई दे रहे थे"
" तुम जानते हो उस धर्म को"
"कहीं तुम ही वह धर्म तो नहीं "
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