Abhishek Kumar  
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शक्ल पे मत जाओ गच्चा खा जाओगे।
Joined 10 December 2016


शक्ल पे मत जाओ गच्चा खा जाओगे।
Joined 10 December 2016
2 OCT 2021 AT 14:07

तुझे छोड़ कर जाना कहां आसान था,
कुछ रिश्तों को आखिर टूटने से बचाना था।

छुटते पिंजरे का किसे गम नहीं
आते तुफान से मुझे अपना घर भी बचाना था।

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11 JUN 2018 AT 19:12

शायरों की बस्ती में गम के ही पहरे है
थोड़े तुम ठहरे हो थोड़े हम भी ठहरे हैं
जो सुन ना पाए दिल की बातें कोई ग़म नहीं
आखिर तुम भी बहरे हो आखिर हम भी बहरे हैं।।

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9 APR 2018 AT 18:36

कभी किसी समंदर को रेगिस्तान बनते देखा है....

अफ़सोस कि एक वक्त से आपने हमें भी तो नहीं देखा।

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29 MAR 2018 AT 20:36

ये जो शहर रूकता नहीं था कभी ,
कल ठहर सा गया था
परींदे आजाद थे और आदमी कैद था
कुछ लाल छिंटे पड़ी हुई थी सड़को पर
और खौफ से भरी हुई थी आंखे

इंसानियत वहीं घायल पड़ी कराह रही थी
मैं उसे देखते ही पूछ बैठा
" अरे भाई तुम्हारा ये हाल किसने किया,
तुम्हें बचाना तो सबका धर्म था ना"

धर्म सुनते ही वह फफक पड़ा
फिर पता नहीं क्यों अचानक
जोर जोर से हंसने लगा
"धर्म.....हां वे लोग बार बार
धर्म की ही तो दुहाई दे रहे थे"
" तुम जानते हो उस धर्म को"
"कहीं तुम ही वह धर्म तो नहीं "













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1 FEB 2018 AT 22:28

कल मैंने बारिश में इश्क मिला कर चखा
स्वाद कुछ जाना पहचाना सा था .....
अरे हां ये तो आंसु की बूंदें है

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2 JAN 2018 AT 23:43

चलों एक काम करते हैं
पहले धरती को जगह जगह खोदकर
उसमें फसलें उगाएंगे
फिर उसको निचोड़कर जल निकालेंगे
और फिर उसको तोड़कर घर बनाएंगे

और एक ऐसी ही किसी रात में भरपेट खाकर
अपने घर के छत पर भरे गिलास के साथ
आसमां को निहारते हुए कहेंगे
" ये चांद तु कितना खुबसूरत है। तुझसा यहां कोई नहीं।।"

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26 DEC 2017 AT 0:06

तुम आए और सब कुछ बदल गया
कुछ ऐसा ही बदला था
जब तुम अचानक चले गए थे
ये आना जाना तो वक्त के साथ बदलते रहते हैं
शाश्र्वत रहता‌‌ है बस तुम्हारा यूं बदल जाना।।

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17 DEC 2017 AT 21:57

जब कभी मुझे सिगरेट पीने की तलब लगती है
तब मैं बड़ी शिद्दत से उसे पैकेट से निकालता हूं
बड़े सलीके से उन्हें होंठों से लगाता हूं
और एक लंबा कश लेता हूं
मानो सारे धुंए को समेट लेना चाहता हूं
फिर धीरे धीरे जब सिगरेट जल‌ कर लगभग खत्म हो जाती है
तो बड़ी बेरहमी से उसे कुचल देता है अपने कदमों से
कुछ ऐसी ही कुचली जाती है औरतें
सोखे जाने के बाद



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25 OCT 2017 AT 22:05

मुहब्बत को अश्कों से ही लिखने दो
लहू से तो पहले ही अनगिनत गाथाएं लिखी जा चुकी है।।

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24 OCT 2017 AT 0:05

कल रात जहां अश्कों से तुमने रेत पर इश्क लिखा था ना
आज सुबह वहां कुछ फरिश्ते नमाज अदा करने आए थे।।

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