Abhishek   (फक्कड़)
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Joined 29 June 2017


Joined 29 June 2017
3 DEC 2022 AT 14:52

प्रेम

गुनगुनी धूप
एक प्याली चाय
दो जोड़े हाथ

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26 NOV 2022 AT 15:51

दुनिया बनाने वाले ने
मृत्यु लोक बनाया है
अच्छा जो भी दिखाया वो
कितना कम बनाया है

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14 NOV 2022 AT 8:32

नीरस लोगों का साथ नीरस लोगों को ही पसंद आता है, प्यार में इतना रस है कि किसी की छोटी- छोटी बात में भी स्वाद ले सके।

हम जब इस प्यार के लिए तैयार हो जाते हैं तो किसी भी नीरस वस्तु में रस ढूँढ लेते हैं। सामने से उतना ही प्यार न पाने पर पीछे हट जाते हैं। यह मन कभी तो एक मुस्कान पर हार मान जाता है तो कभी लाख बहाने भी सुनाई नहीं देते।

प्यार से बेहतर कोई उपहार नहीं, किसी की प्रेमपूर्वक कही हुई एक बात भी दिल में घर कर सकती है। इस उपहार को मना करने का अर्थ ईश्वर से बैर लगाना है, प्रेम के मार्ग में किंतु, परंतु नहीं आते केवल प्रेम आता है, टकटकी लगाए प्रतीक्षारत।

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12 NOV 2022 AT 14:39

नाक

आँखों के बीचों बीच से निकली
एक सीधी लाइन सरीखी
नाक तुम्हारी, प्यारी प्यारी

आँखे गर हैं जाम नशीले
होंठ कहें इन्हें और पी ले
सीक कबाब सी रंग जमाती
नाक तुम्हारी, जान हमारी

मतवाले चेहरे पर उदासी
कभी कभी थोड़ी आ जाती
गुस्से में कुप्पा बन जाती
नाक तुम्हारी, हाय बेचारी

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3 NOV 2022 AT 23:52

जीने ले लिए ज़िंदगी को जान नहीं, मौत को मनमीत बनाना पड़ता है

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3 NOV 2022 AT 23:38

मैं कहीं गिरा बैठा हूँ 100 का नोट
तुम्हें मिले तो ख़र्च कर लेना
अपने या किसी और के ऊपर
बचाओगे तो गवाओगे मेरी तरह
बैठोगे फ़िर हिसाब लगाओगे
कि एक 100 का नोट ही नहीं गंवाया
बीते सालों में

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29 OCT 2022 AT 13:49

झूठ, फ़रेब, घोखाधड़ी
किसी पशु को करते देखा कभी ?
न्याय की गुहार लगाते
अन्याय करते, पाप पचाते
रोते बिलखते की रोटी खाते
भूख से इतर चमड़ी चबाते..
कौन सा पशु छेड़ता लड़की!
माथे झलकती नोटों की कड़की
पशु समान व्यवहार कह देते
हम पशुओं का मान हर लेते
यह सब इंसान का काम है
पशु तो यूँ ही बदनाम है

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28 OCT 2022 AT 1:23

तू हँसकर कह देती है, मैं लिख तक नहीं पाता
तुझसे मिलकर लगता है मुझे कुछ नहीं आता

कुछ दिन पहले ही पूछे थे घरवाले मुझसे,
तू आज कल छुट्टी में घर क्यूँ नहीं आता !?

मिलने को तरस जाता हूँ महीनों तुझसे,
तुझे मुझ पर ज़रा सा भी तरस नहीं आता

बज्र पड़ रखे क्या तेरे भाई की बुद्धि पर,
चुपचाप मेरा साला क्यूँ बन नहीं जाता!

जात बिरादरी लगाए लांछन, कोई फ़र्क नहीं
दिल के आगे जाति-बंधन टिक नहीं पाता

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26 OCT 2022 AT 17:16

कितने ग़ैरत को खो बैठे
कितने नीयत को खा बैठे
हमने भी सोचा कि आओ
कितने पैसे कमा ले देखें !
थोड़े दिन दिल ने धिक्कारा
कुछ रातें मन ने दुत्कारा
चेहरे जो रोते दीखे थे
महीने बाद न मिले दुबारा
हमने भी रूह बेची है
कुछ सस्ती हाँ, कुछ से महँगी है
भ्रम है दुनिया, भ्रम है माया
फ़िर भी कितनी अच्छी है

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23 OCT 2022 AT 0:05

लालच सबसे बुरी बला है, जीवन का लालच हमें भयभीत बना देता है और किसी भी प्रकार का जोख़िम नहीं उठाने देता। पैसे का लालच ईमान बेच खाता है, हवस का लालच दिल का सौदा कर देता है।
लेकिन सबसे बड़ा लालची या यूँ कहो, बुरी बलाओं का बाप है हुकूमत का लालच। दूसरों के जीवन पर अधिकार जमाने का यह चस्का अपनों से भी दूर कर देता है।

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